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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजयक्ष्मा और उरःक्षतकी चिकित्सा । ६०१ मन्दज्वराग्निः कफपित्तलिंगे रुपद्रुतः क्षीणबलोऽतिपाण्डुः । सब्यान्यपायकृतिप्रदुष्ट ज्ञयं यकृद्दाल्युदरं तथैव ॥ रोगीके शरीरमें मन्दा-मन्दा ज्वर बना रहे, भूख मारी जाय, कफ और पित्तका कोप दीखे, बल नाश हो जाय और शरीरका रङ्ग पीला पड़ जाय, तो समझो कि दाहिनी पसलीके नीचे रहनेवाला यकृतलिवर--कलेजा या जिगर खराब हो गया है। हिकमतकी पुस्तकोंमें लिखा है, अक्सर तपेकोनः, तपेदिक और सिलकी बीमारीवालों यानी जीर्णज्वर, क्षय और उरःक्षत-रोगियोंके यकृतमें सूजन या वरम आ जाती है । यकृत या लिवरमें सूजन आ जानेसे जीर्णज्वर और यक्ष्मा तथा उरःक्षत रोग असाध्य हो जाते हैं। अगर जल्दी ही यकृतका इलाज न करनेसे उसमें मवाद पड़ जाता है, तो उस दशामें मुंहकी राहसे वह मवाद या जरा-जरा-सा खून-मिला मवाद निकलने लगता है । "इलाजुल गुर्बा" में लिखा है, सिल या फेफड़ेमें घाव होनेसे ऐसा बुखार आता है कि वह सैकड़ों तरहके उपाय करनेसे भी नहीं उतरता । खाँसीके साथ खून निकलता और रोगी दिन-दिन बल-हीन होता जाता है । इस हालतमें वासलीककी फस्द खोलना और पीछे ज्वर और खाँसीकी दवा करना हितकारी है। इसकी साफ पहचान यही है, कि यकृतमें सूजन और मवाद पड़नेसे रोगी अगर दाहिनी करवट सोता है, तो खाँसी जोरसे उठती है, अतः रोगी दाहिनी करवट सोना नहीं चाहता और सो भी नहीं सकता । यकृतकी खराबीका हाल वैद्य हाथसे छूकर भी जान सकता है । अगर दाहिनी पसलियोंके नीचे दबानेसे कड़ापन मालूम होता हो, पके फोड़ेपर हाथ लगाने-जैसा दर्द होता हो, तो निश्चय ही. यकृतमें खराबी हुई समझनी चाहिये । इस हालतमें फस्द खोलना, यकृतपर लेप लगाना और यकृत-दोष-नाशक दवा देना हितकारी For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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