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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८८ ... चिकित्सा-चन्द्रोदय । खुलासा यह है, जो अत्यन्त मैथुन करते हैं, उनका शरीर पीला पड़ जाता है। क्योंकि वीर्यके क्षय होनेसे उलटे क्रमसे धातुएँ क्षीण होने लगती हैं। पहले वीर्य क्षीण होता है, फिर वायु कुपित होता और मज्जाको क्षीण करता है । मज्जाके क्षीण होनेसे अस्थियाँ क्षीण होती हैं । अस्थियोंके क्षीण होनेसे मेद, मेदके क्षीण होनेसे मांस, मांसके क्षीण होनेसे खून और खूनके क्षीण होनेसे रस क्षीण होता है। अथवा यों समझिये कि, जब वीर्य क्षीण हो जाता है, तब मज्जा उसकी कमीको पूरा करती है और खुद कम हो जाती है । मज्जाको कम देखकर, अस्थियाँ उसकी कमीको पूरा करतीं और खुद कम हो जाती हैं। इसी तरह एक दूसरी धातुकी कमी पूरी करनेके लिए प्रत्येक धातु कम होती जाती है। धातुओंके कम होने या क्षीण होनेसे मनुष्य क्षीण हो जाता है। शोक शोषके लक्षण । जिस चीजके न होने या नष्ट हो जानेसे रोगीको शोक होता है, शोक शोषमें, उसी चीजका ध्यान उसे सदैव बना रहता है । उसके अङ्ग शिथिल हो जाते हैं । व्यवाय-शोष-रोगीकी तरह उसकी शुक्र आदि समस्त धातुएँ क्षीण होने लगती हैं । फर्क इतना ही होता है, कि व्याधिके प्रभावसे लिङ्ग और फोतों प्रभृतिमें पीड़ा आदि उपद्रव नहीं होते। खुलासा यह है, जिस तरह अत्यन्त स्त्री-प्रसंग करनेसे शोष-रोग हो जाता है; उसी तरह शोक, चिन्ता या फिक्र करनेसे भी शोष-रोग हो जाता है । शोक-शोष होनेसे शरीर ढीला और गिरा-पड़ा-सा रहता है और बिना धातु-क्षयके भी धातु-क्षयके लक्षण देखने में आते हैं । चिन्ताके समान शरीरकी धातुओंको नाश करनेवाला और दूसरा नहीं है। चिन्तासे क्षण-भरमें हाथ-पैर गिर पड़ते हैं, बैठकर उठा For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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