SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 611
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय । डरता है, स्त्री, शराब और मांसकी बहुत ही इच्छा करता है एवं उसके नाखून और बाल भी बहुत बढ़ते हैं। यह सब तो जाग्रत अवस्थाकी बातें हैं। सो जानेपर, स्वनमें, क्षयवाला पतंग, सर्प, बन्दर और किरकेंटा आदिसे तिरस्कृत होता है। कोई लिखते हैं, कौआ, तोता, नीलकण्ठ, गिद्ध, बन्दर और किरकेंटा आदि पशु-पक्षियोंपर अपने तई सवार और बिना जलकी सूखी नदियाँ देखता है तथा हवा, धूएँ या दावानल - बनकी आगसे पीड़ित या सूखे हुए वृक्ष देखता है, बाल, हाड़ या राखके ढेरोंपर चढ़ता है, शून्य या जन-शून्य गाँव या देश देखता है और आकाशसे गिरते हुए तारे और पहाड़ देखता है। यह क्षयरोग होनेसे पहलेके लक्षण या क्षयके पेशवीमे हैं। क्षयके आनेसे पहले ये सब तशरीफ़ लाते हैं। चतुर लोग इन लक्षणोंको देखते ही होशियार और सावधान हो जाते हैं। वहींसे वे रोगके कारणोंको रोकते और मौजूदा शिकायतोंका इलाज करते हैं। ऐसे • लोग क्षयसे बहुत कम मरते हैं। जो क्षयके पूर्व रूपोंको नहीं जानते ' और इसलिये सावधान नहीं होते, उनको फिर नीचे लिखी शिकायतें या उपद्रव हो जाते हैं: .. पूर्व रूपके बादके लक्षण । पहले पूर्व रूप होते हैं, उनके बाद रोग । जब क्षय-रोग प्रकट हो जाता है, तब जुकाम, खाँसी, स्वरभेद-गला बैठना, अरुचि, पसलियोंका संकोचन और दर्द, खूनकी कय और मलभेद-ये लक्षण होते हैं । राजयक्ष्माके लक्षण । त्रिरूप क्षयके लक्षण । - पहला दर्जा। __ जब क्षय-रोग प्रकट होता है, तब पहले कन्धों और पसलियोंमें वेदना होती है, हाथों और पैरोंके तलवे जलते हैं तथा ज्वर चढ़ा रहता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy