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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६८ चिकित्सा-चन्द्रोदय । ODEEDODee@@eDEO 8 वृषणकच्छू-चिकित्सा। OBCBCBGB03€8EBEBEO HOMMEN मनुष्य स्नान करते समय शरीरका मैल साफ नहीं करता, जो फोतों और लिंग आदि गुप्त अङ्गोंको खूब अच्छी तरह Miss नहीं धोता, उसके फोतोंमें मैल जम जाता है। जब उस मैलपर पसीने आते हैं, तब खुजली चलने लगती है। खुजाते रहनेसे वहाँ फुन्सी-फोड़े हो जाते हैं, जिनमेंसे राध बहने लगती है। इस रोगको “वृषणकच्छू” कहते हैं । यह फोतोंका रोग कफ और रक्तके .कोपसे होता है। चिकित्सा। राल, कूट, सेंधानोन और सफ़ेद सरसों-इन चारोंको पीसकर उबटन बना लो और फोड़ोंपर मलो। इस उबटनसे वृषणकच्छू या फोतोंकी खुजली फौरन मिट जाती है। नोट--पिछले पृष्ठ ५६७ के नं० ५ तेलसे भी फोतोंकी खुजली वगरः व्याधियाँ आराम होती हैं। KENARMERE RATERMIRE * कखौरीकी चिकित्सा। * हकी बग़लमें, एक महा कष्टदायक फोड़ा होता है, उसे ही AL कखौरी, कँखलाई या काँखहरी कहते हैं। रोग पित्तके कोपसे होता है। चिकित्सा । (१) देवदारु, मैनसिल और कूट-इन तीनोंको पीस और स्वेदित करके लेप करनेसे कफ-वातसे उत्पन्न हुई कँखलाई नष्ट हो जाती है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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