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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्द्रलुप्त या गंजकी चिकित्सा । ५६५ __ (७) गञ्ज रोगमें, मस्तकको बारम्बार खुरचकर, चिरमिटीको पानीके साथ पीसकर लेप करना चाहिये। अगर जड़ ज़ियादा नीची हो गई होगी, तो भी इस नुसनेसे लाभ होगा। नोट- यह नुसखा भी सुश्रुतका है, पर हम "वैद्य-विनोद"से लिख रहे हैं। (८) “सुश्रुत में लिखा है, श्योनाक और देवदारुके लेपसे गंजरोग जाता है। (६) गोखरू और तिलके फूलोंमें उनके बराबर घी और शहद मिलाकर, सिरपर लगानेसे सिर बालोंसे भर उठता है। (१०) मुलेठी, नील कमल, दाख, तेल, घी और दूध- इन सबको मिलाकर, सिरपर लगानेसे गञ्ज रोग नाश हो जाता है तथा बाल सघन और दृढ़ हो जाते हैं। (११) भाँगरा पीसकर मलनेसे गञ्ज या बालखोरा रोग नाश हो जाते हैं। (१२) चुकन्दरके पत्तोंका अस्सी माशे स्वरस कड़वे तेलमें जलाकर, तेलका लेप करनेसे गञ्ज रोग आराम हो जाता है । (१३) घोड़े या गधेका खुर जलाकर राख कर लो। फिर इस राख को मीठे तेल में मिलाकर गञ्जपर मलो । इससे गञ्ज रोग चला जायगा। (१४) गंधक पानीमें पीसकर और शहद मिलाकर लगानेसे गञ्ज रोग जाता है। (१५) आमलोंको चुकन्दरके रसमें पीसकर सिरपर लगानेसे ५६ दिनमें बाल आ जाते हैं। (१६) थोड़ा-सा दही ताम्बेके बर्तनमें उस समय तक घोटो, जब तक कि वह हरा न हो जाय, हरा हो जानेपर, उसका लेप करो। इस उपायसे बाल आ जाते हैं। (१७) कुन्दश और हाथीदाँतका बुरादा, मुसकी चरबीमें मिलाकर लगानेसे अवश्य बाल उग आते हैं । लिखा है, अगर हथेलीपर लगाओ, तो वहाँ भी बाल आ जायें । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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