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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीसरा अध्याय । स्थावर विषोंकीसामान्य चिकित्सा। वेगानुसार चिकित्सा। (१) पहले वेगमें -शीतल जल पिलाकर वमन या कय करानी चाहिये तथा शहद और धीके साथ अगद-विष-नाशक दवा-- पिलानी चाहिये, क्योंकि पिया हुआ विष वमन करानेसे तत्काल निकल जाता है। . (२) दूसरे वेगमें -पहले वेगकी तरह वमन या कय कराकर, विरेचन या जुलाब भी दे सकते हैं। नोट--चरककी रायमें, पहले वेगमें वमन करानी और दूसरे वेगमें जुलाब देना चाहिये । सुश्रुत कहते हैं, पहले और दूसरे--दोनों वेगोंमें वमन कराकर, विषको निकाल देना चाहिये, क्योंकि वह इस समय तक आमाशयमें ही रहता है । पर, अगर ज़रूरत समझी जाय, तो चिकित्सक इस वेगमें जुलाब भी दे सकता है । चरकका अभिप्राय यह है, कि विष सामान्यतया शरीरमें फैला हो या न फैला हो, दूसरे वेगमें जुलाब देकर उसे निकाल देना चाहिये । चरक मुनि इस मौकेपर एक बहुत ही ज़रूरी बातकी ओर ध्यान दिलाते हैं। वह कहते हैं:-- पीतं चमनै सद्योहरेद्विरेकैर्द्वितीयेतु । आदौ हृदयं रक्ष्यं तस्यावरण पिवेद्यथालाभम् ।। पिया हुअा विष नमनसे तत्काल निकल जाता है, अतः शुरूमें किसी वमनकारी दवासे कय करा देनी चाहिये। विषके दूसरे वेग या दौरेमें, जुलाब देकर, For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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