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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय । पास ही योनिमें गिरता है। गर्भाशयका स्वभाव वीर्यको चूसना है, अतः वह अनेक बार उसे फौरन ही चूस लेता है। वीर्य निकल चुकते ही मैथुन-कर्म खतम हो जाता है। वीर्य निकलते ही खून लौट जाता है, इसलिये लिंग शिथिल हो जाता है। बहुत मैथुन हानिकारक है। अत्यधिक मैथुनसे स्त्री-पुरुष दोनों ही यक्ष्मा या राजरोग प्रभृति प्राण-नाशक रोगोंके शिकार हो जाते हैं। गर्भाधान । जब पुरुषका वीर्य स्त्रीके गर्भाशयमें जाता है, तब उसमें शुक्रकीट भी होते हैं। शुक्रकीटोंका डिम्बोंसे अधिक अनुराग होता है; अतः जिस डिम्ब-प्रनाली में डिम्ब होता है, उसीमें शुक्रकीट घुसते हैं। मतलब यह है कि, शुक्रकीट धीरे-धीरे गर्भाशयसे डिम्ब-प्रनालीमें जा पहुँचते हैं । गर्भ रहने के लिये शुक्रकीटकी ही जरूरत होती है । वीर्यके साथ शुक्रकीट तो बहुत जाते हैं, पर इनमें जो शुक्रकीट जबरदस्त होता है, वही डिम्बके अन्दर घुस पाता है। ___ बहुतसे अनजान समझते हैं कि, गर्भाशयमें अधिक वीर्यके जानेसे गर्भ रहता है । यह बात नहीं है। गर्भ के लिये एक शुक्रकीट ही काफी होता है । इसलिये अगर जरा-सा वीर्य भी गर्भाशयमें रह जाता है तो गर्भ रह जाता है, योनि, गर्भाशय और डिम्ब-प्रनालीमें शुक्रकीट कई दिनों तक जीते रहते हैं; अतः जिस दिन मैथुन किया जाय उसी दिन गर्भ रह जाय, यह बात नहीं है। शुक्रकीटोंके जीते रहनेसे मैथुनके कई दिन बाद भी गर्भ रह सकता है। ___असलमें शुक्राणु और डिम्बके मिलनेको गर्भाधान कहते हैं; यानी इन दोनोंके मिलनेसे गर्भ रहता है। जब एक शुक्राणु या शुक्रके कीड़ेका एक ही डिम्बसे मेल होता है, तब एक ही गर्भ रहता और एक ही बच्चा पैदा होता है। जब कभी दो शुक्रकीटोंका दो डिम्बोंसे मेल हो जाता है, तब दो गर्भ पैदा होते हैं। इस For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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