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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३२ चिकित्सा-चन्द्रोदय । शुक्रकीटकी लम्बाई एक इंचसे हजारवें भाग या पाँचसौवें भागके जितनी होती है । इस कीड़ेका अगला भाग मोटा और अण्डेकी-सी शकलका होता है तथा पिछला भाग पतला और नोकदार होता है । अगले भागको सिर, सिरके पीछेके दबे हुए भागको गर्दन, बीचके भागको शरीर और शरीरके अन्तिम भागको दुम या पूँछ कहते हैं। शुक्रकीट या वीर्यके कीड़े वीर्यके तरल भागमें तैरा करते हैं। कमजोर कीड़े धीरे-धीरे और ताकतवर तेजीसे दौड़ते फिरते हैं। इनकी दुम पानी में तैरते हुए या ज़मीनपर रेंगते हुए साँपकी तरह हरकत करती जान पड़ती है। शुक्रकीट कब बनने लगते हैं ? शुक्रकीट चौदह या पन्द्रह बरसकी उम्रमें बनने लगते हैं, परन्तु इस समयके शुक्रकीट बलवान सन्तान पैदा करने-योग्य नहीं होते । अच्छे शुक्रकीट बीस या पच्चीस सालकी उम्रमें बनते हैं। अतः जो लोग छोटी उम्रमें ही मैथुन करने लगते हैं, उनकी अपनी वृद्धि रुक जाती है और जो सन्तान पैदा होती है, वह निर्बल और अल्पायु होती है । इसलिये २०-२५ वर्षकी उम्रसे पहले स्त्री-प्रसंग न करना चाहिये। ___ शुक्र-ग्रन्थियोंसे शुक्रकीट तो बनते ही हैं, इनके सिवा एक और बड़ा काम होता है--एक और कामकी चीज़ बनती है। यद्यपि सन्तान पैदा करनेके लिये उसकी जरूरत नहीं होती, पर वह खून में मिलकर शरीरके भिन्न-भिन्न अङ्गोंमें पहुँचती और उन्हें बलवान करती है। हर पुरुषको शरीर बढ़नेके समय इसकी दरकार होती है। अगर हम किसीके अण्डोंको जवानी आनेसे पहले ही निकाल दें, तो वह अच्छी तरह न बढ़ेगा । उसके डाढ़ी मूंछ वगैरः जवानीके चिह्न अच्छी तरह न निकलेंगे । बैल और साँडका फर्क सभी जानते हैं । जब बछड़ेके अण्ड निकाल लेते हैं, तब वह बैल बन जाता है। बैल न तो For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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