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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नर-नारीकी जननेन्द्रियोंका वर्णन । ५२६ मूत्राशयके नीचले भागसे लेकर सुपारीके सूराख्न तक पेशाब बहनेके लिये एक लम्बी राह बनी हुई है। इसे मूत्र-मार्ग कहते हैं। पेशाब आनेका एक द्वार भीतर और एक बाहर होता है। जिस जगहसे मूत्रमार्ग शुरू होता है, उसे ही भीतरका मूत्रद्वार कहते हैं और सुपारीके छेदको बाहरका मूत्रद्वार कहते हैं । पुरुषके मूत्र-मार्गकी लम्बाई ७८ इञ्च और स्त्रीके मूत्रमार्गकी लम्बाई डेढ़ इञ्च होती है । भीतरी मूत्रद्वारके नीचे प्रोस्टेट नामकी एक ग्रन्थि रहती है । मूत्र-मार्गका एक इंच हिस्सा इसी ग्रन्थिमें रहता है।। अण्डकोष या फोते लिंगके नीचे एक थैली रहती है, उसे ही अण्डकोष कहते हैं। संस्कृतमें उसे वृष्ण कहते हैं। फोतोंकी चमड़ीके नीचे वसा नहीं होती, पर मांसकी एक तह होती है। जब यह मांस सुकड़ जाता है, तब यह थैली छोटी हो जाती है और जब फैल जाता है, तब बड़ी हो जाती है। सर्दीके प्रभावसे यह मांस सुकड़ता और गर्मीसे फैलता है। बुढ़ापेमें मांसके कमजोर होनेसे यह थैली ढीली हो जाती और लटकी रहती है। इस अण्डकोप या थैलीके भीतर दो अण्ड या गोलियाँ रहती हैं। दाहिनी तरफवालेको दाहिना अण्ड और बाई तरफवालेको बायाँ अण्ड कहते हैं। अण्डकोष या अण्डोंकी थैलीके भीतर एक पर्दा रहता है, उसीसे वह दो भागोंमें बँटा रहता है । उस पर्देका बाहरी चिह्न वह सेवनी है, जो अण्डकोषकी थैलीके बीचमें दीखती है। यह सेवनी पीछेकी तरफ मलद्वार या गुदा और आगेकी तरफ लिंगकी सुपारी तक रहती है। इस अण्डकोषके भीतर दो कड़ी-सी गोलियाँ होती हैं, इन्हें "अण्ड" कहते हैं। ये दोनों अण्ड जिस चमड़ेकी थैलीमें रहते हैं, उसे "अण्डकोष" कहते हैं । इन अण्डोंके ऊपर एक झिल्ली रहती है । इस झिल्लीकी For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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