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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-चिकित्सामें याद रखने-योग्य बातें। २५ . एक जगहसे फूटकर दूसरी जगह भी जा फूटा हो, तो समझना होगा, यह दंश--काटना सांघातिक या प्राण-नाशक है। __इस तरह काटे हुए स्थानकी रङ्गत और आकार-प्रकार आदिसे वैद्य विषकी तेजी-मन्दी और साध्यासाध्यता तथा काटनेवाले सर्पकी किस्म या जात जान सकता है। जो वैद्य ऐसी-ऐसी बातोंमें निपुण होता है वही विष चिकित्सासे यश और धन कमा सकता है। (८) विषकी हालतमें, अगर हृदयमें पीड़ा और जलन हो और में हसे पानी गिरता हो, तो अवस्थानुसार तीव्र वमन या विरेचन-- कय या दस्त करानेवाली तेज़ दवा देनी चाहिये । वमन विरेचनसे शरीरको साफ़ करके, पेया आदि पथ्य पदार्थ पिलाने चाहियें। _ अगर विष सिरमें पहुँच गया हो, तो बन्धुजीव--गेजुनियाके फूल, भारंगी और काली तुलसीकी जड़की नस्य देनी चाहिये । ___ अगर विषका प्रभाव नेत्रों में हो, तो पीपल, मिर्च, जवाखार, बच, सेंधानमक और सहँजनेके बीजोंको रोहू मछलीके पित्तेमें पीसकर आँखोंमें अंजन लगाना चाहिये ।। अगर विष कंठगत हो, तो कच्चे कैथका गूदा चीनी और शहदके साथ चटाना चाहिये। अगर विष आमाशयगत हो, तो तगरका चार तोले चूर्ण--मिश्री और शहद के साथ पीना चाहिये। ___ अगर विष पक्वाशयमें हो, तो पीपर, हल्दी, दारुहल्दी और मँजीठको बराबर-बराबर लेकर, गायके पित्तेमें पीसकर, पीना चाहिये। ___ अगर विष रसगत हो, तो गोहका खून और मांस सुखाकर और पीसकर कच्चे कैथके रसके साथ पीना चाहिये। अगर विष रक्तगत हो यानी खून में हो, तो लिहसौड़ेकी जड़की छाल, बेर, गूलर और अपराजिताकी शाखोंके अगले भाग--इनको पानीके साथ पीसकर पीना चाहिये । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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