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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ चिकित्सा-चन्द्रोदय । तो हमें यही मालूम हुआ कि हिन्दुओंकी सौ विधवाओंमेंसे नव्वे व्यभिचार करती हैं, पर ८० फीसदीमें तो हमें जरा भी शक नहीं। हम कट्टर सनातन धर्मी और कृष्णक भक्त हैं, आर्यसमाजी नहीं; पर विधवा-विवाहके मामलेमें हम उनसे पूर्णतया सहमत हैं। हमने हर पहलूसे विचार करके एवं धर्मशास्त्रका अनुशीलन और अध्ययन करके ही अपनी यह राय स्थिर की है। हमने कितनी ही विधवाओंसे विधवा-विवाहपर उनकी राय भी ली, तो उन्होंने यही कहा, कि मर्द आप तो चार-चार विवाह करते हैं, पर स्त्रियाँ अगर अक्षतयोनि भी हों, तो उनका पुनर्विवाह नहीं करते। यह उनका घोर अन्याय है। काम-वेगको रोकना महा कठिन है। अगर ऐसी विधवाएँ व्यभिचार करें तो दोष-भागी हो नहीं सकती; हिन्दुओंको अब लकीरका फ़कीर न होना चाहिये। विधवा-विवाह जारी करके हजारों पाप और कन्याओंके श्रापसे बचना चाहिये । विधवा-विवाह न होनेसे हमारी हजारों-लाखों विधवा बहन-बेटियाँ मुसलमानी हो गई। हम व्यभिचार पसन्द करें, भ्रूण-हत्याको बुरा न समझे, अपनी स्त्रियोंको मुसलमानी बनते देख सकें; पर रोती-विलपती विधवाओंका दूसरा विवाह होना अच्छा न समझे; हमारी इस समझकी बलिहारी है। हमने नीचे गर्भ गिरानेके नुसखे इस ग़रज़से नहीं लिखे कि, व्यभिचारिणी विधवायें इन नुसखोंको सेवन करके गर्भ गिरावें; बल्कि नेक स्त्रियोंकी जीवन रक्षाके लिए लिखे हैं। गर्भ गिराना उचित है। हिकमत में लिखा है, नीचेकी हालतमें गर्भ गिराना उचित है: (१) गर्भिणी कम-उम्र और नाजुक हो एवं दर्द न सह सकती हो । बच्चा जननेसे उसकी जान जानेकी सम्भावना हो। . (२) गर्भ न गिरानेसे स्त्रीके भयानक रोगोंमें फँसनेकी सम्भावना हो। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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