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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रसव-विलम्ब-चिकित्सा। ४७६ (१६) सरफ़ोंकेकी जड़ बच्चा जननेवालीकी कमरमें बाँधनेसे बालक शीघ्र ही बाहर आ जाता है। (२०) जीते हुए साँपके दाँत स्त्रीके कंठ या गलेमें लटका देनेसे बच्चा सुखसे होता है। (२१) इन्द्रायणकी जड़को महीन पीसकर और घीमें मिलाकर, योनिमें रखनेसे बच्चा सुखसे हो जाता है। नोट-इन्द्रायणको जड़ योंही योनिमें रखने से भी बालक बाहर श्रा जाता है। यह चीज़ इस कामके लिये अथवागर्भ गिरानेके लिये अकसीरका काम करती है। (२२) गायका दूध आध पाव और पानी एक पाव मिलाकर स्त्रीको पिलानेसे तुरन्त बच्चा हो पड़ता है; कष्ट ज़रा भी नहीं होता। (२३) काग़ज़पर चक्रव्यूह लिखकर स्त्रीको दिखानेसे भी बच्चा जल्दी होता है। (२४) फालसेकी जड़ और शालिपीकी जड़--इनको एकत्र पीसकर, स्त्रीकी नाभि, पेड़ और भगपर लेप करनेसे बच्चा सुखसे होता है। (२५) कलिहारीके कन्दको काँजीमें पीसकर स्त्रीके पाँवोंपर लेप करनेसे बच्चा सुख-पूर्वक होता है। (२६) तालमखाने की जड़को मिश्रीके साथ चबाकर, उसका रस गर्भिणीके कानमें डालनेसे बच्चा सुखसे होता है। ___ नोट-हिन्दीमें तालमखाना, संस्कृतमें कोकिलाक्ष, बंगलामें कुलियाखाड़ा, कुले काँटी, मरहटीमें तालिमखाना और गुजरातीमें एखरो कहते हैं । (२७)) श्यामा और सुदर्शन-लताको पीसकर और उसमेंसे बत्तीस तोले लेकर स्त्रीके सिरपर रखदो । जब तक उसका रस पाँवों तक टपककर न आ जाय, सिरपर रखी रहने दो। इससे बच्चा सुख-पूर्वक होता है। (२८) चिरचिरेकी जड़को उखाड़कर, योनिमें रखनेसे बच्चा सुखसे होता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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