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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-गर्भिणी-चिकित्सा। ४६३ गर्भपात और उसके उपद्रवोंकी चिकित्सा। (१) भौंरीके घरकी मिट्टी, मोंगरेके फूल, लजवन्ती, धायके फूल, पीला गेरू, रसौत और राल-इनमेंसे सब या जो-जो मिलें, उन्हें कूट-पीसकर छान लो। इस चूर्णको शहदमें मिलाकर चाटनेसे गिरता हुआ गर्भ रुक जाता है। ___ (२) जवासा, सारिवा, पद्माख, रास्ना, मुलेठी और कमल-- इनको गायके दूधमें पीसकर पीनेसे गर्भस्राव बन्द हो जाता है। (३) सिंघाड़ा, कमल-केशर, दाख, कसेरू, मुलहटी और मिश्री-- इनको गायके दूध पीसकर पीनेसे गर्भस्राव बन्द हो जाता है। (४) कुम्हार बर्तन बनाते समय, हाथमें लगी हुई मिट्टीको पोंछता जाता है । उस मिट्टीको लाकर गर्भिणीको पिलानेसे गिरता हुआ गर्भ थम जाता है। ___ (५) खिरेंटीकी जड़ कँवारी कन्याके काते हुए सूतमें बाँधकर, कमरमें लपेटनेसे गिरता हुआ गर्भ थम जाता है। (६) कुश, कास, लाल अरण्डकी जड़ और गोखरू--इनको दूधमें औटाकर और मिश्री मिलाकर पीनेसे गर्भवतीकी पीड़ा दूर हो जाती है। दवाओंका कल्क १ तोले, दूध ३२ तोले और पानी १२८ तोले लेकर दूध पकाओ । जब दूध-मात्र रह जाय, छान लो। (७) कसूमके रंगे हुए लाल डोरेमें एक करंजुआ बाँधकर गर्भिणीकी कमरमें बाँध देनेसे गर्भ नहीं गिरता। अगर गर्भ रहते ही यह कमरमें बाँध दिया जाय और नौ महीने तक बँधा रहे, तो गर्भ गिरनेका भय ही न रहे। - नोट--कण्टक करा या करंजुएके पेड़ माली लोग फुलवाड़ियोंकी बाढ़ोंपर रक्षाके लिये लगाते हैं । इनके फल कचौरी-जैसे होते हैं। इनके इर्द-गिर्द इतने काँटे होते हैं कि तिल धरनेको जगह नहीं मिलती, फलमेंसे चार-पाँच दाने निकलते हैं। उन दानोंको ही "करंजुवा" या "करंजा" कहते हैं । दानेके ऊपरका For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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