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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-गर्भिणी-चिकित्सा। ४६१ मिहनत करने, अत्यन्त दबाव पड़ने, कूदने, फलाँगने, गिरने, दौड़ने, व्रत-उपवास करने, अजीर्ण होने, मल-मूत्र आदि वेगोंके रोकने, गर्भ 'गिरानेवाले तेज़ और गर्म पदार्थ खाने, विषम-ऊँचे-नीचे स्थानोंपर सोने या बैठने, डरने और तीक्ष्ण, गर्म, कड़वे तथा रूखे पदार्थ खाने'पीने आदि कारणोंसे गर्भस्राव या गर्भपात होता है। गर्भस्राव और गर्भपातमें फर्क ? चौथे महीने तक जो गर्भ खूनके रूप में गिरता है, उसे "गर्भस्राव" कहते हैं। लेकिन जो गर्भ पाँचवें या छठे महीने में गिरता है, उसे “गर्भपात” कहते हैं। - खुलासा यह, कि चार महीने तक या चार महीनेके अन्दर अगर गर्भ गिरता है, तो वह खूनके रूपमें होता है, यानी योनिसे यकायक खून आने लगता है, पर मांस नहीं गिरता; इसीसे उसे "गर्भस्राव होना" कहते हैं । क्योंकि इस अवस्थामें गर्भ स्रवता या चूता है । पाँचवें महीनेके बाद गर्भका शरीर बनने लगता है और उसके अङ्ग सख्त हो जाते हैं । इस अवस्थामें अगर गर्भ गिरता है, तो मांसके छीछड़े, खून और अधूरा बालक गिरता है, इसीसे इस अवस्थाके गिरे गर्भको "गर्भपात” होना कहते हैं। गर्भस्राव या गर्भपातके पूर्वरूप । - अगर गर्भ स्रवने या गिरनेवाला होता है, तो पहले शूलकी पीड़ा होती और खून दिखाई देता है। - खुलासा यह है, कि अगर किसी गर्भिणीके शूल चलने लगें और खून आने लगे तो समझना चाहिये, कि गर्भस्राव या गर्भपात होगा। गर्भ अकाल में क्यों गिरता है ? .. जिस तरह वृक्षमें लगा हुआ फल चोट वगैरः लगनेसे अकाल या असमयमें गिर पड़ता है; उसी तरह गर्भ भी चोट वगैरः लगने For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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