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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-बाँझ बनानेवाली दवाएँ। ४५७' - (३६) मैथुनके बाद, योनिमें कालीमिर्च रखनेसे गर्भ नहीं रहता। (३७) अगर स्त्री ३ माशे ६ रत्ती नील खा ले तो कदापि गर्भवती न हो। (३८) अगर स्त्री चमेलीकी एक कली निगल ले, तो एक साल तक गर्भवती न हो। . . (३६) अगर स्त्री एक रेंडीका गूदा निगल जाय, तो एक साल तक गर्भवती न हो। अगर दो रेडीका गूदा निगल ले, तो दो साल तक गर्भ न रहे। . (४०) मैथुनके समय खानेका नोन भगमें रखनेसे गर्भ नहीं रहता। - (४१ ) अगर किसी लड़केका पहला दाँत गिरनेवाला हो, तो औरत उसका ध्यान रखे । ज्यों ही वह गिरे, उसको हाथमें ले ले, जमीनपर न गिरने दे। फिर उस दाँतको चाँदीके जन्तरमें मढ़ाकर अपनी भुजापर बाँध ले । इस उपायसे हर्गिज़ गर्भ न रहेगा। ( ४२ ) अगर स्त्री मैथुनके समय, मैंडककी हड्डी अपने पास रक्खे, तो कदापि गर्भ न रहे । (४३ ) काकुजके सात दाने, ऋतु-धर्मके पीछे, निगल लेनेसे स्त्रीको गर्भ नहीं रहता। (४४) अगर स्त्री बाँझ होना चाहे, तो थूहरकी लकड़ी लाकर छायामें सुखाले। सूखनेपर उसे जलाकर राख कर ले और राखको पीस-छानकर रख ले। फिर इसमेंसे एक माशे-भर राख लेकर, उसमें माशे-भर शक्कर मिला दे और खा जावे। इस तरह २१ दिन तक इस राखके खानेसे गर्भ-धारण-शक्ति मारी जाती है और गर्भ नहीं रहता।. । (४५) मनुष्यके कानका मैल और एक दाना बाकलेका पश्मीनेमें बाँधकर, स्त्री अपने गले में लटका ले । जब तक गलेमें यह रहेगा, हर्गिज गर्भ न रहेगा। ५८ For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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