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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय । नोट--इस चूर्णको ऋतुकालमें, पाँच दिन तक जल या दूधसे फाँकना चाहिये। . (२) चार तोले हरड़की मींगी मिश्री मिलाकर, तीन दिन, खानेसे रजोधर्म नहीं होता । जब रजोधर्म न होगा, गर्भ भी न रहेगा। (३) दूधीकी जड़को बकरीके दूधमें मिलाकर, तीन दिन, पीनेसे स्त्री रजस्वला नहीं होती। . (४) पुष्यार्क योगमें, धतूरेकी जड़ लाकर कमरमें बाँधनेसे कभी गर्भ नहीं रहता । विधवाओंके लिये यह उपाय अच्छा है। "वैद्यरत्न"में लिखा है:. धत्तरमूलिका पुष्ये गृहीता कटिसंस्थिता । गर्भ निवारयत्येव रंडा वेश्यादियोषिताम् ॥ : (५) पलाश यानी ढाकके बीजोंकी राख शीतल जलके साथ पीनेसे स्त्रीको गर्भ नहीं रहता । “वैद्यवल्लभ"में लिखा है: राक्षांपलाशवीजस्य पीत्वाशीतेन वारिणा । न भ्रूणं लभते नारी श्री हस्तिकविनामतः ॥ (६) पाँच दिन तक हींगके साथ तेल पीनेसे गर्भ नहीं रहता। (७) चीतेके पिसे-छने चूर्णमें गुड़ और तेल मिलाकर, तीन दिन तक, पीनेसे गर्भ नहीं रहता। (८) करेलेके रसके पीनेसे गर्भ नहीं रहता। (६) पुराने गुड़के साथ उड़द खानेसे गर्भ नहीं रहता। : (१०) जाशुकीके सूखे फल खानेसे गर्भ नहीं रहता। ., (११) ढाकके बीज, शहद और घी-इन तीनोंको मिलाकर ऋतु समयमें, अगर स्त्री योनिमें रखे, तो फिर कभी गर्भ न रहे। “वैद्यरत्न"में लिखा है - . पलाशबीजंमध्वाज्यलेपात्सामर्थ्ययोगतः .. । योनिमध्ये ऋतौ धत्ते गर्भ धत्ते न कर्हिचित् ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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