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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ wommmmmmmmmmmmmmmmme चिकित्सा-चन्द्रोदय। (१) दूषी विष, और (२) गर। .. जिस कृत्रिम विषका सम्बन्ध विषसे होता है, उसे दूषी विष कह सकते हैं, जब कि वह हीनवीर्य हो गया हो; पर जिसका सम्बन्ध विषसे नहीं होता, पर वह विषके-से काम करता है, उसे “गर विष" कहते हैं। जैसे; स्त्रियाँ अपने पतियोंको वशमें करनेके लिये, उन्हें अपना आर्तव-मासिक-धर्मका खून, मैल या पसीना प्रभृति खिला देती हैं । वह सब विषका काम करते हैं-धातुक्षीणता, मन्दाग्नि और ज्वर आदि करते हैं । पर वे वास्तवमें न तो विष हैं और न विष वगैरः कई चीजोंके मेलसे बने हैं, इसलिये उनको किसी हालतमें भी “दूषी विष” नहीं कह सकते। गर विषके लक्षण । "चरक में लिखा है, संयोजक विषको “गर विष" कहते हैं। वह भी रोग करता है। "भावप्रकाश" में लिखा है, मूर्खा स्त्रियाँ अपने पतियोंको वशमें करनेके लिये, उन्हें रज, पसीना तथा अनेकानेक मलोंको भोजनमें मिलाकर खिला देती हैं । दुश्मन भी इसी तरहके पदार्थोंको भोजनमें खिला देते हैं। ये पसीने और रज प्रभृति मैले पदार्थ “गर" कहलाते हैं। गर विषके काम । पसीना और रज आदि गर पदार्थोंसे शरीर पीला पड़ जाता है, दुबलापन हो जाता है, भूख बन्द हो जाती है, ज्वर चढ़ आता है, मर्मस्थानों में पीड़ा होती है तथा अझारा, धातुक्षय और सूजन-ये रोग हो जाते हैं। नोट-यहाँ तक हमने मुख्य चार तरहके विष लिखे हैं:-(१) स्थावर विष, . (२) जंगम विष, (३) दूषी विष, और (४) गर विष। आप इन्हें अच्छी तरह For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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