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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-बाँझका इलाज। ४३७ कराया और साथ ही पुरुषको भी "वृष्यतमघृत" या कोई पुष्टिकर औषधि सेवन कराई । जब देखा, कि दोनों नीरोग हो गये, स्त्रीको योनिरोग, प्रदर रोग या आर्तव रोग नहीं है और पुरुष तथा स्त्रीके वीर्य और रज शुद्ध हैं, तब ऋतुस्नानके चौथे दिन, स्त्रीको पृष्ठ ४३१-३२ के नं० २६ या २७ नुसनोंमेंसे कोई सेवन कराकर, गर्भाधानकी सलाह दी। इस तरह हमें १०० में ६० केसोंमें कामयाबी हुई। योनिरोग-नाशक फलघृत । गिलोय, त्रिफला, रास्ना, हल्दी, दारुहल्दी, शतावर, दोनों तरहके सहचर, स्योनाक, मेदा और सोंठ-इन ग्यारह दवाओंको सिलपर जलके साथ पीसकर लुगदी कर लो। फिर आधसेर घी और दो सेर दूध तथा लुगदीको कलईदर कढ़ाहीमें चढ़ाकर, जंगली कण्डोंकी मन्दी-मन्दी आगसे पकाओ । जब घी-मात्र रह जाय, उतारकर छान लो । यही योनि-रोग नाशक फलघृत है। यह योनिरोगकी दशामें रामवाण है । इस घीके पीनेसे योनिमें दर्द होना, उसका अपने स्थानसे हट जाना, बाहर निकल आना और मुँह चौड़ा हो जाना प्रभृति कितने ही योनि रोग, पित्त-योनि, विभ्रान्त योनि तथा षण्ढ योनि ये सब आराम होकर गर्भ-धारणकी शक्ति हो जाती है। योनि-दोष दूर करनेमें यह फलघृत परमोत्तम है । परीक्षित है। वृष्यतमघृत । विधायरा लेकर पीस-कूटकर छान लो और फिर उसे सिलपर पानीके साथ पीसकर लुगदी बना लो । यह लुगदी, गायका घी और गायका दूध इन सबको मिलाकर, ऊपरकी तरह घी बना लो और उसे सेवन करो। यह घी पुत्र चाहनेवाले पुरुषोंको परमोत्तम है। नोट- अगर कोई और दवा खाकर वीर्य पुष्ट और शुद्ध कर लिया हो, तो भी यदि कुछ दिन यह घी सेवन किया जायगा, तो उत्तम पुत्र होगा। इससे हानि नहीं, वरन् लाभ ही होगा । परीक्षित है । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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