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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा--बाँझका इलाज । ४२५ लक्षण(१) कफका दोष होनेसे सफ़ेद तरी, पित्तका दोष होनेसे पीली और __ बादीसे काली तरी निकलती है। नोट-यह विषय पहले पा चुका है, पर पाठकोंके सुभीतेके लिये हमने फिर भी लिख दिया है। चिकित्सा-- (१) सारा मवाद निकालनेको पीनेकी दवा दो। (२) गर्भाशय शुद्ध करनेको हुकना करो। छठा भेद । कारण-मुटाई या मोटा हो जाना । नतीजा--गर्भाशयमें चर्बी बढ़ जाय । लक्षण-- (१) पेट मुनासिब से ऊँचा और बड़ा हो। (२) चलने-फिरनेसे श्वास रुके। (३) जरा भी बादी और मल पेटमें जमा हो जाय, तो बड़ा कष्ट हो । (४) मूत्र-स्थान या योनिद्वार छोटा हो जाय । (५) अगर गर्भ रह भी जाय, तो बढ़कर गिर पड़े। चिकित्सा-- (१) बदन दुबला करनेको फस्द खोलो। . . (२) जुलाब दो। (३) भोजन कम दो। (४) इतरीफल और कम्मूनी प्रभृति खुश्क चीजें खिलाओ। ...... सातवाँ भेद । कारण-दुबलापन । नतीजा--स्त्रीके ज़ियादा कमजोर होनेसे, बच्चेके अङ्ग बननेको, रजका मैला फोक न रहे और रजक न बननेसे गर्भगत बालकके लिए भोजन भी न बने। २४ . . For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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