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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा--बाँझका इलाज । ४१३ नहीं देखते, वे समझते हैं कि बाँझ होनेके दोष स्त्रियों में ही होते हैं, मर्दो में नहीं। इसीसे वे लोग और घरकी बड़ी-बूढ़ी बच्चा न होनेपर, गर्भ-स्थित न होनेपर, बहुओंके लिये गण्डे-ताबीज और दवाओंकी फिक्र करती हैं, अनेक तरहके कुवचन सुनाती हैं, ताने मारती हैं और सवेरे ही उनके मुख देखनेमें भी पाप समझती हैं। पर अपने सपूतोंके वीर्यकी ओर उनका ध्यान नहीं जाता। पुरुषके वीर्यमें दोष रहनेसे, स्त्रीके गर्भ रहने-योग्य होनेपर भी, गर्भ नहीं रहता। हमने अनेक स्त्री-पुरुषोंके रज और वीर्यकी परीक्षा करके, उनमें अगर दोष पाया तो दोष मिटाकर, गर्भोत्पादक औषधियाँ खिलाई और ठीक फल पाया; यानी उनके सन्तानें हुई। अतः वैद्य जब किसी बाँझका इलाज करे, तब उसे उसके पुरुषकी भी परीक्षा करनी चाहिये। देखना चाहिये, कि पुरुष महाशयमें तो बाँझपनका दोष नहीं है । “बङ्गसेन में लिखा है: एवं योनिष शुद्धासु गर्भ विन्दन्ति योषितः । अदुष्ट प्राकृते बीजे बीजोपक्रमणे सति ॥ इस तरह “फलघृत" प्रभृति योनि-दोष-नाशक औषधियोंसे शुद्ध की हुई योनिवाली स्त्री गर्भको धारण करती है-गर्भवती होती है; किन्तु पुरुषोंके बीजके दूषित न होने–स्वभावसे ही शुद्ध होने या दवाओंसे शुद्ध करनेपर। इसका खुलासा वही है, जो हम ऊपर लिख आये हैं। स्त्रीको आप योनि-रोग वगैरःसे मुक्त कर लें, पर अगर पुरुषके बीजमें दोष होगा, तो स्त्री गर्भवती न होगीगर्भ न रहेगा। इससे सात प्रमाणित हो गया कि, गर्भ रहनेके लिये स्त्रीकी रज और पुरुषका वीर्य दोनों ही निर्दोष होने चाहियें। अगर दोनों ही या कोई एक दोषी हो, तो उसीका इलाज करके, रोगमुक्त करके, तब सन्तान होनेकी दवा देनी चाहिये। दवा For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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