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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ - चिकित्सा-चन्द्रोदय । .. (१२) मालकाँगनीके पत्ते और विजयसार लकड़ी,-इन दोनोंको दूधमें पीस-छानकर पीनेसे रुका हुआ मासिक फिर खुल जाता है। (१३) काले तिल, सोंठ, मिर्च, पीपर, भारङ्गी और गुड़--सब दवाएँ समान-समान भाग लेकर, दो तोलेका काढ़ा बनाकर, बीस दिन तक पिया जाय, तो निश्चय ही रुका हुआ मासिक खुल जाय एवं रोग नाश होकर पुत्र पैदा हो। -- (१४) योगराज गुग्गुल सेवन करनेसे भी शुक्र और आर्तवके दोष नष्ट हो जाते हैं। (१५) अगर मासिक-धर्म ठीक समयसे आगे-पीछे होता हो, तो खराबी समझो । इससे कमजोरी बहुत होती है । इस हालतमें छातियों के नीचे “सींगी" लगवाना मुफीद है। (१६) कपास के पत्ते और फूल आध पाव लाकर, एक हाँडीमें एक सेर पानीके साथ जोश दो । जब तीन पाव पानी जलकर एक पाव जल रह जाय, उसमें चार तोले "गुड़" मिलाकर छान लो और पीओ । इस तरह करनेसे मासिक-धर्म होने लगेगा। (१७) नीमकी छाल दो तोले और सोंठ चार माशे; इनको कूटछानकर, दो तोले पुराना गुड़ मिलाकर, हाँडीमें, पाव-डेढ़ पाव पानी डालकर, मन्दाग्निसे जोश दो; जब चौथाई जल रह जाय, उतारकर छान लो और पीओ । इस नुसनेके कई दिन पीनेसे खून-हैज़ या रजोधर्म जारी होगा । परीक्षित है। (१८) काले तिल और गोखरू दोनों तोले-तोले-भर लेकर, रातको हाँडीमें जल डालकर भिगो दो। सवेरे ही मलकर शीरा निकाल लो। उस शीरेमें २ तोले शकर मिलाकर पी लो । इस नुसनेके लगातार सेवन करनेसे खून-हैज़ जारी हो जायगा; यानी बन्द हुआ आर्त्तव बहने लगेगा । परीक्षित है। (१६) मूलीके बीज, गाजरके बीज और मैंथीके बीज-इन For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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