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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-योनिरोग। . नोट-गुड़ च्यादि घृत विशेषकर वातज योनिरोगोंमें स्त्रीको उचित मात्रासे खिलाना-पिलाना चाहिये। (२०) कड़वे नीमकी निबौलियोंको नीमके रसमें पीसकर, योनिमें रखने या लेप करनेसे, योनि-शूल मिट जाता है । परीक्षित है। (२१) अरण्डीके बीज नीमके रसमें पीसकर गोलियाँ बना लो। इन गोलियोंको योनिमें रखने या पानीमें पीसकर इनका लेप करनेसे योनि-शूल मिट जाता है। __(२२) आमलेकी गुठली, बायबिडंग, हल्दी, रसौत और कायफल--इनको बराबर-बराबर लेकर और कूट-पीसकर छान लो। पीछे इस चूर्ण को "शहद में मिला-मिलाकर रोज योनिमें भरो । इस नुसनेसे “योनिकन्द" रोग निश्चय ही नाश हो जाता है। पर इसे भरनेसे पहले, हरड़, बहेड़े और आमलेके काढ़ेमें "शहद" मिलाकर, उससे योनिको सींचना या धोना उचित है; अर्थात् इस काढ़ेसे योनिको धोकर, पीछे ऊपरका चूर्ण शहदमें मिलाकर योनिमें भरना चाहिये। काढ़ा नित्य ताजा बनाना चाहिये। (२३) मजीठ, मुलेठी, कूट, हरड़, बहेड़ा, आमला, खाँड़, खिरेंटी, एक-एक तोले, शतावर दो तोले, असगन्ध चार तोले, असगन्धकी जड़ १ तोले तथा अजमोद, हल्दी, दारुहल्दी, फूलप्रियंगू, कुटकी, कमल, बबूला-कुमुदिनी, दाख, काकोली, क्षीरकाकोली, सफेद चन्दन और लाल चन्दन-ये सब एक-एक तोले लाकर, पीसकूटकर छान लो। फिर छने चूर्णको सिलपर रख और जलके साथ पीसकर कल्क या लुगदी बना लो। __चौंसठ तोले गायका घी, १२८ तोले शतावरका रस और १२८ तोले दूध तथा ऊपरकी लुगदी-इन सबको कलईदार कढ़ाहीमें रख, मन्दाग्निसे चूल्हेपर पकाओ । जब घीकी विधिसे घी तैयार हो जाय, उतारकर छान लो और रख दो। इसका नाम “फलघृत" है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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