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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३.७४ चिकित्सा - चन्द्रोदय । योनि रोगों में रूखी और गरम दवायें देना अच्छा है। उधर पृष्ठ ३७७ में लिखी नं० १५ बत्ती ऐसे रोगों में अच्छी पाई गई है । ( ६ ) वातसे पीड़ित योनि में हींगके कल्क में घी मिलाकर योनिमें रखना चाहिये । पित्त से पीड़ित योनि में पंचवल्कलके कल्कमें घी मिलाकर योनिमें रखना चाहिये । कफजन्य योनि रोगोंमें श्यामादिक औषधियोंके कल्क या लुगदी में घी मिलाकर योनि में रखना चाहिये । अगर योनि कठोर हो, तो उसे मुलायम करनेवाली चिकित्सा करनी चाहिये । सन्निपातज योनि-रोग में साधारण क्रिया करनी चाहिये । अगर योनिमें बदबू हो, तो सुगन्धित पदार्थोंके काढ़े, तेल, कल्क या चूर्ण योनि में रखने से बदबू नहीं रहती । जैसे- पृष्ठ ३७८ का नं० १८ नुसखा । (७) याद रखो, सभी तरह के योनि रोगों में " वातनाशक चिकित्सा ” उपकारी है, पर वातज-योनि - रोगों में स्नेहन, स्वेदन और वस्ति कर्म विशेष रूपसे करने चाहियें । कहा हैः सर्वेषु योनिरोगेषु वातघ्नः क्रमइष्यते । स्नेहनः स्वेदनो वस्तिर्वातायां विशेषतः || योनि - रोग नाशक नुमखे । ( १ ) " चरक" में योनि रोगोंपर "धांतक्यादि" तेल लिखा है । उस तेलका फाहा योनि में रखने और उसीकी पिचकारी योनिमें लगानेसे विप्लुता आदि योनि-रोग, योनिकन्द-रोग, योनिके घाव, सूजन For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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