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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय । (५) सौराष्ट्रिक विष-जो विष सौराष्ट्र देशमें पैदा होता है, उसे "सौराष्टिक विष" कहते हैं। (६) श्रृंगिक विष--जिस विषको गायके सींगके बाँधनेसे दूध लाल हो जाय, उसे "शृंगिक" या "सींगिया विष" कहते हैं। (७) कालकूट विष--पीपलके जैसे वृक्षका गोंद होता है। यह शृङ्गवेर, कोंकन और मलयाचलमें पैदा होता है। (८) हालाहल विष-इसके फल दाखोंके गुच्छोंके जैसे और पत्ते ताड़के जैसे होते हैं। इसके तेजसे आस-पासके वृक्ष मुझी जाते हैं। यह विष हिमालय, किष्किन्धा, कोंकन देश और दक्षिण महासागरके तटपर होता है। (६) ब्रह्मपुत्र विष-इसका रङ्ग पीला होता है और यह मलयाचल पर्वतपर पैदा होता है। - कन्द-विषोंके उपद्रव । सुश्रुतमें लिखा है:-- (१) कालकूट विषसे स्पर्श-ज्ञान नहीं रहता, कम्प और शरीरस्तम्भ होता है। (२) वत्सनाभ विषसे ग्रीवा-स्तम्भ होता है तथा मल-मूत्र और नेत्र पीले हो जाते हैं। . (३) सर्षपसे तालूमें विगुणता, अकारा और गाँठ होती है । (४) पालकसे गर्दन पतली पड़ जाती और बोली बन्द हो जाती है। (५) कर्दमकसे मल फट जाता और नेत्र पीले हो जाते हैं । __ (६) वैराटकसे अङ्गमें दुःख और शिरमें दर्द होता है । (७) मुस्तकसे शरीर अकड़ जाता और कम्प होता है । (८) शृङ्गी विषसे शरीर ढीला हो जाता, दाह होता और पेट फूल जाता है। (2) प्रपौंडरीक विषसे नेत्र लाल होते और पेट फूल जाता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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