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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४. चिकित्सा-चन्द्रोदय । चिकित्सा करनी चाहिये एवं रक्तातिसार, रक्तपित्त और खूनी बवासीरकी जो चिकित्सा कही गई है, वही वैद्यको प्रदर रोगमें भी करनी उचित है । चरकने तो ये पंक्तियाँ लिखकर ही प्रदर चिकित्साका खात्मा कर दिया है । चक्रदत्तने भी लिखा है:... रक्तपित्तविधानेन प्रदरांश्चाप्युपाचरेत् ॥ - रक्तपित्तमें कहे हुए विधान भी प्रदर रोगमें करने उचित हैं। "बङ्गसेन" में भी लिखा है-- तरुण्याहित सेविन्यास्तदल्पोपद्रवंभिषक् । रक्तपित्त विधानेन यथावत्समुपाचरेत् ॥ - यदि अहित पदार्थ सेवन करनेवाली स्त्रियोंके अल्प उपद्रव हों,. तो रक्तपित्तके विधान या कायदेसे चिकित्सा करनी चाहिये । प्रदर-नाशक नुसखे । XoxoxoxoxoxoxoxoeXeRexexsexsexsexoegen १०GersexeXSEXST OR (गरीबी नुसखे) (१) दो तोले अशोककी छाल, गायके दूधमें पकाकर और मिश्री मिलाकर, सवेरे-शाम, दोनों समय लगातार कुछ दिन, पीनेसे घोर. रक्तप्रदर निश्चय ही आराम हो जाता है । परीक्षित है। . नोट--यह नुसखा प्रायः सभी ग्रन्थों में लिखा हुआ है । हमने इसकी अनेक बार परीक्षा भी की है । वास्तव में, यह रक्कप्रदरपर अक्सीरका काम करता है। अगर अशोककी छालका काढ़ा पकाकर, उसके साथ दूध पकाया जाय और शीतल होने पर सवेरे ही पिया जाय, तब तो कहना ही क्या ? "भावप्रकाश"में लिखा है--अशोककी छाल चार तोले लेकर, एक हाँडीमें रखकर, ऊपरसे १२८ तोले पानी डालकर मन्दाग्निसे पकायो। जब ३२ तोले पानी रह जाय, उसमें ३२ ताले दूध भी मिला दो और फिर पकायो । जब पकते-पकते केवल दूध रह जाय, नीचे उतार लेो । जब दूध खूब शीतल हो जाय, उसमेंसे १६ तोले दूध निकालकर सवेरे ही पीओ। अगर जठराग्नि कमज़ोर हो तो दूध कम पीश्रो । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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