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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रदर रोग । ३४१ असृग्दरो प्राणहरः प्रदिष्टः स्त्रीणामतस्तं विनिवारयेच्च । सब तरहके प्रदर रोग प्राण नाश करते हैं, इसलिये उनको शीघ्र ही दूर करना चाहिये। ___ असाध्य प्रदरके लक्षण । अगर हर समय खून बहता हो, प्यास, दाह और बुखार हो, शरीर बहुत कमजोर हो गया हो, बहुत-सा खून नष्ट हो गया हो, शरीरका रङ्ग पिलाई लिये सफ़ेद हो गया हो, तो चतुर वैद्यको ऐसे लक्षणोंवाली रोगिणीका इलाज हाथमें न लेना चाहिये। क्योंकि इस दशामें पहुँचकर रोगिणीका आराम होना असम्भव है। ये सब असाध्य रोगके लक्षण हैं। नोट--सुचतुर वैद्य असाध्य रोगीका इलाज करके वृथा अपनी बदनामी नहीं कराते । हाँ, जिन्हें साध्यासाध्यकी पहचान नहीं, वे ही ऐसे असाध्य रोगियोंकी चिकित्सा करने लगते हैं। यही बात हम त्रिदोषज प्रदरके लक्षणोंके नीचे, जो नोट लिखा है उसमें, चरकसे लिख आये हैं । वैद्यको सभी बातें याद रखनी चाहिये । इलाज हाथमें लेकर पुस्तक देखना भारी नादानी है। __ इलाज बन्द करनेको शुद्ध श्रावके लक्षण । . "चरक"में लिखा है:-- मासानिष्पिच्छदाहार्ति पञ्चरात्रानुबन्धि च । नैवाति बहुलात्यल्पमा शुद्धमदिशेत् ॥ यदि स्त्री महीने-की-महीने ऋतुमती हो और उसकी योनिसे पाँच रातसे जियादा खून न गिरे और उस ऋतुका खून दाह, पीड़ा और चिकिनाईसे रहित तथा बहुत ज़ियादा या बहुत कम न हो, तो कहते हैं कि शुद्ध ऋतु हुआ। ___और भी लिखा है,-ऋतुका खून चिरमिटीके रङ्गका, लाल कमलके रङ्गका अथवा महावर या बीरबहुट्टीके रङ्गका हो, तो समझना चाहिये कि विशुद्ध ऋतु हुई। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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