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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३० चिकित्सा-चन्द्रोदय । र मकड़ी-विष-नाशक नुसखे । (१) फूल प्रियंगू , हल्दी, दारुहल्दी, शहद, घी और पद्माख - इन सबको मिलाकर सेवन करनेसे सब तरहके कीड़ों और मकड़ीका विष नष्ट हो जाता है। (२) करंज, प्राकका दूध, कनेर, अतीस, चीता और अखरोट-- इन सबके स्वरसके द्वारा पकाया हुआ तेल लगानेसे मकड़ीका किया हुआ घाव नष्ट हो जाता है। (३) मण्डवा पानीमें पीसकर लगानेसे मकड़ीके विकार फुन्सी वगैरः नाश हो जाते हैं। (४) सफ़ेद जीरा और सोंठ--पानीमें पीसकर लगानेसे मकड़ी के विकार नाश हो जाते हैं ! ( ५ ) केंचुए पीसकर मलनेसे मकड़ीका जहर और उसके दाने आराम हो जाते हैं। नोट--कैंचुए न मिले तो उनकी मिट्टी ही मलनी चाहिये। (६) चूनेको नीबूके रसमें खरल करके मलनेसे मकड़ीके दाने मिट जाते हैं। (७) चूनेको मीठे तेल और चिरौंजी के साथ पीसकर लेप करनेसे मकड़ीके दाने नष्ट हो जाते हैं। (८) लाल चन्दन, सफेद चन्दन और मुर्दासंग--इन तीनोंको पीसकर लगानेसे मकड़ीका जहर नाश हो जाता है। (६) खली और हल्दी पानीमें पीसकर लेप करनेसे मकड़ीका विष नाश हो जाता है। (१०) हल्दी, दारुहल्दी, मँजीठ, पतंग और नागकेशर-इन सबको शीतल जलमें एकत्र पीसकर, काटने के स्थानपर लेप करनेसे मकड़ीका विष शान्त हो जाता है । परीक्षित है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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