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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ - चिकित्सा-चन्द्रोदय । हुआ स्थान अवश्य आराम हो जाता है । इस कामके लिये यह मरहम बड़ी ही उत्तम है। ___ नोट--मोमको गलाकर जैतूनके तेलमें मिला लो। फिर शेष तीनोंको खूब महीन पीसकर मिला दो। बस, मरहम बन जायगी। सूचना-बन्दर या भेड़ियेके काटनेपर पहले पछने लगाकर ज़हर निकाल दो, फिर लेप या मरहम लगायो । 0086863636363666668600 मकड़ीके विषकी चिकित्सा । 0038860606068686868680 0000 हते हैं. किसी समय विश्वामित्र राजा महामुनिवशिष्ठजीके एक आश्रममें गये और उन्हें गुस्सा दिलाया। वशिष्ठजीको OC क्रोध आया, उससे उनके ललाटपर पसीने आ गये। वह पसीने सामने पड़ी हुई गायकी कुट्टीपर पड़े; उनसे ही, अनेक प्रकारके लूता नामके कीड़े पैदा हो गये। .लूता या मकड़ीके काटनेसे काटा हुआ स्थान सड़ जाता है, खून बहने लगता है, ज्वर चढ़ आता है, दाह होता है, अतिसार और त्रिदोषके रोग होते हैं, नाना प्रकारकी फुन्सियाँ होती हैं, बड़े-बड़े चकत्ते हो जाते हैं और बड़ी गंभीर, कोमल, लाल, चपल, कलाई लिये हुए सूजन होती है । ये सब मकड़ीके काटनेके सामान्य लक्षण हैं। .. अगर काटे हुए स्थानपर काला या किसी कदर झाँईवाला, जाले समेत, जलेके समान, अत्यन्त पकनेवाला और क्लेद, सूजन तथा ज्वर सहित घाव हो, तो समझो कि दूषी विष नामकी मकड़ीने काटा है। असाध्य लूता या मकड़ीके काटनेके लक्षण । - अगर असाध्य मकड़ी काटती है, तो सूजन चढ़ती है, लाल सफेद और पीली-पीली फुन्सियाँ होती हैं, ज्वर आता है, प्राणान्त करने For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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