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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ चिकित्सा-चन्द्रोदय । और सेमल - इन सबका काढ़ा बनाकर, उस काढ़े द्वारा शेर आदिके काटे स्थानको सींचनेसे या इस काढ़ेका तरड़ा देनेसे नं०५ में लिखे सभी जानवरोंका विष शान्त हो जाता है । AKAIRMIRRIMAAIK मण्डूक-विष-चिकित्सा। डक बहुत तरहके होते हैं। उनमें से जहरीले मैंडक आठ प्रकारके होते हैं:-- (१) काला, (२) हरा, (३) लाल, (४ ) जौके रंगका, (५) दहोके रंगका, (६) कुहक, (७) भ्र कुट, और (८) कोटिक । __इनमेंसे पहले छै मैंडकोंमें जहर तो होता है, पर कम होता है । इनके काटनेसे काटे हुए स्थानमें बड़ी खुजली चलती है और मुखसे पीले-पीले भाग गिरते हैं । भ्रकुट और कोटिक बड़े भारी जहरी होते हैं। इनके काटनेसे काटी हुई जगहमें बड़ी भारी खाज चलती है, मैं हसे पीले पीले झाग गिरते हैं, बड़ी जलन होती है, क्य होती हैं, और घोर मूर्छा या बेहोशी होती है । कोटिकका काटा हुआ आदमी आराम नहीं होता। नोट-कोटिक मैंडक बीरबहुट्टीके श्राकारका होता है। "बंगसेन में लिखा हैः-विषैले मैंडकके काटनेसे मैंडकका एक ही दाँत लगता है । दाँत लगे स्थानमें वेदना-युक्त पीली सूजन होती है, प्यास लगती, वमन होती और नींद आती है। ___ "तिब्बे अकबरी” में लिखा है,--जो मैंडक लाल रंगके होते हैं, उनका विष बुरा होता है। यह मैंडक जिस जानवरको दूरसे भी देखता है, उसीपर जोरसे कूदकर आता है। अगर यह किसी तरह नहीं काट सकता, तो जिसे काटना चाहता है उसे फूंकता है। फूंकनेसे भी भारी सूजन चढ़ती और मृत्यु तक हो जाती है । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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