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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय | श्वान - विष नाशक नुसखे । (१) कड़वी तोरई का रेशे समेत गूदा निकालो। फिर इस गूदेको एक पाव पानी में आध घण्टे तक भिगो रखो । शेषमें, इसको मसल-छानकर, बलानुसार, पाँच दिन तक, नित्य, सवेरे पीओ । इससे दस्त और क्रय होकर विष निकल जाता है। बावले कुत्ते का कैसा भी विष क्यों न हो, इस दवा से अवश्य आराम हो जाता है, बशर्ते कि आयु हो, और जगदीशकी कृपा हो । नोट- बरसात निकल जाने तक पथ्य रखना बहुत जरूरी है। कड़वी तोरई जंगली होनी चाहिये । (२) कुकुर भाँगरेको पीसकर पीने और उसीका लेप करनेसे कुत्त े का विष नष्ट हो जाता है । नोट-भाँगरेके पेड़ जलके पासकी ज़मीनमें बहुत होते हैं । इनकी शाखों में कालापन होता है । पत्तोंका रस काला-सा होता है । सफ़ ेद, काले और 1 पीले-तीन तरहके फूलों के भेदसे ये तीन तरहके होते हैं । इसकी मात्रा २ माकी है। (३) आके दूधका लेप कुत्ते और बिच्छू के काटे स्थानपर लगाने से अवश्य आराम हो जाता है । बहुत ही उत्तम योग है । नोट – ऊपरके तीनों नुसख श्रज़मूदा हैं । अनेक बार परीक्षा की है । जिनकी ज़िन्दगी थी, वे बच गये । "वैद्यसर्वस्व में लिखा है: ---- विषमर्कपयेोलेपः श्वानवृश्चिकयोर्जयेत् । कौक्कुरु पानलेपाभ्यामथश्वानविषं हरेत् || अर्थ वही है जो नं० २ और ३ में लिखा है । तो तत्काल, बिना देर किये, थोड़ा-सा सिन्दूर मिलाकर ( ४ ) अगर किसीको पागल कुत्ता या पागल गीदड़ काट खाय, सफ़ेद आक का दूध निकालकर, उसमें उसे रूईके फाहेपर रखकर, काटे हुए For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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