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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बावले कुत्ते के काटेकी चिकित्सा | ३१३ और नौसादर को भी पीसकर मिला दो। इस मरहमके लगानेसे घाव भरता नहीं - उल्टा घायल होता है । (५) जब कि कुत्ते के काटे आदमी के शरीर में विष फैलने लगे और दशा बदलने लगे, तब बादीके निकालने की ज़ियादा चेष्टा करो। इस कामके लिये ये उपाय उत्तम हैं: (क) तिरिया अबा और दवा - उस्सुरतान रोगीको सदा खिलाते रहो। जिस तरह वैद्यक में "अगद" हैं, उसी तरह हिकमत में “तिरियाक" हैं । ( ख ) जिस कुत्ते ने काटा हो, उसीका जिगर भूनकर रोगीको खिलाओ। (ग) पाषाणभेद इस रोगकी सबसे अच्छी दवा है । (घ) नहरी कीकड़े १७|| मारो, पाषाणभेद १७ || माशे, कुँदरु गोंद १०॥ माशे, पोदीना १०|| माशे और गिलेमखतूम ३५ माशे- इन सबको कूट-पीसकर चूर्ण बना लो । इसकी मात्रा ३ || माशे की है । इस चूर्ण से बड़ा लाभ होता है । (६) कुत्ते काटे आदमीको तिरियाक या पेशाब ज़ियादा लानेवाली दवा देनेसे पानीका भय नहीं रहता । (७) कुत्ते का काटा आदमी पानीसे डरता है - प्यासा मर जाता है, पर पानी नहीं पीता । रोगी प्यासके मारे मर न जाय, इसलिये एक बड़ी नली में पानी भरकर उसे उसके मुँह से लगा दो और इस तरह पिलाओ, कि उसकी नजर पानी पर न पड़े । प्यास और खुश्की से न मरने देनेके लिये, तरी और सर्दी पहुँचानेकी चेष्टा करो । ठण्डे शीरे, तर भोजन और प्यास बुझानेवाले पदार्थ उसे खिलाते रहो । (८) तीन मास तक घावको मत भरने दो। काटे हुए सात दिन बीत जायें, तब "आकाशबेल" या "हरड़का काढ़ा " रोगीको पिलाकर शरीरका मवाद निकाल दो | ४० For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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