SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कीट-विष-चिकित्सा। ३०१ .. (२) तेल में पिसी हुई गंधक मिलाकर, उसमें एक कपड़ेका टुकड़ा भिगोकर आप जहाँ बाँध देंगे, वहाँ चींटियाँ न जायँगी । बहुतसे लोग ऐसे कपड़ोंको मिठाई के बर्तन या शर्बतोंकी बोतलोंके किनारोंपर बाँध देते हैं । इस तरह के गंधक और तेलमें भीगे कपड़ेको लाँघनेकी हिम्मत चींटियों में नहीं। चींटीके काटनेपर नुसखे । (१) साँपकी बमईकी काली मिट्टीको गोमूत्रमें भिगोकर चींटीके काटे स्थानपर लगाओ, फौरन आराम होगा। इस उपायसे विषैली मक्खी और मच्छरका विष भी नष्ट हो जाता है । सुश्रुत । (२) कालीमिर्च, सौंठ, सेंधानोन और कालानोन-इन सबको बन-तुलसीके रसमें पीसकर लेप करनेसे चींटी, बर्र, ततैया और मक्खीका विष शान्त हो जाता है। (३) केशर, तगर, सौंठ और कालीमिर्च-इनको पानीमें पीसकर लेप करनेसे बरं, चींटी और मक्खीका विष नष्ट हो जाता है। (४) सोया और सेंधानोन-इनको घीमें पीसकर लेप करनेसे चींटी, बर्र और मक्खीका विष नाश हो जाता है। कीट-विष-नाशक नुसखे । YGOOK NONOMO द्धिमान वैद्यको विष-रोगियोंकी शीतल चिकित्सा करनी 8 बुर चाहिये; पर कीड़ोंके विषपर शीतल चिकित्सा हानिकारक RsP5 होती है, क्योंकि शीतसे कीट-विष बढ़ता है। सुश्रतमें लिखा है: उष्णवजों विधिः कायों विषार्तानां विजानता । मुक्त्वा कीटविषं तद्धि शीतेनाभिप्रवर्द्धते॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy