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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६७ बर्रके विषकी चिकित्सा। (६) काईको सिरके में मिलाकर, काटे हुए स्थानपर लेप करनेसे बर्रका विष शान्त हो जाता है। (७) खतमी और खुब्बाजीको पानी में पीसकर लुआब निकाल लो। इस लुआबको बर्रके काटे हुए स्थानपर मलो; शान्ति हो जायगी। " (८) बर्रके डङ्क मारे स्थानपर मक्खीमलनेसे आराम हो जाता है। (६) बरके काटे हुए स्थानपर शहद लगाने और शहद ही खानेसे अवश्य लाभ होता है। . (१०) मकोयकी पत्तियाँ, सिरके में पीसकर, बरके काटे हुए स्थानपर लगानेसे आराम होता है। (११) इक्कीस या सौ बारका धोया हुआ घी बर्रकी काटी हुई जगहपर लगानेसे आराम होता है। (१२) बर्रकी काटी हुई जगहको ३।४ बार गरम पानीसे धोनेसे लाभ होता है। (१३) हरे धनियेका रस, सिरके में मिलाकर, लगानेसे बर्रके काटे हुए स्थानमें शान्ति आ जाती है। (१४) कपूरको सिरकेमें मिलाकर लेप करनेसे बर्रका जहर शान्त हो जाता है । परीक्षित है। . (१५) बड़ी बर्रके छत्तेकी मिट्टीका लेप करनेसे बर्रका विष शान्त हो जाता है। कोई-कोई इस मिट्टीको सिरकेमें मिलाकर लगानेकी राय देते हैं। ____ (१६) तिलोंको सिरकेमें पीसकर लेप करनेसे बर्रका विष शान्त हो जाता है। . (१७) गन्धकको पानी में पीसकर लेप करनेसे बर्रका जहर नष्ट हो जाता है। (१८) जिसे बर्र काटे, अगर वह अपनी जीभ पकड़ ले, तो ज़हर उसपर असर नहीं करे। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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