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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय । * पाँचवाँ भाग * - पहला अध्याय । विष-वर्णन। --:*:---- विषकी उत्पत्ति । घ्रा र चीन कालमें, अमृतके लिये, देवता और राक्षसोंने समुद्र auve मथा। उस समय, अमृत निकलनेसे पहले, एक घोरदर्शन भयावने नेत्रोंवाला, चार दाढ़ोंवाला, हरे-हरे बालोंवाला और आगके समान दीप्ततेजा पुरुष निकला। उसे देखकर जगत्को विषाद हुआ-उसे देखते ही जगत्के प्राणी उदास हो गये। चूँकि उस भयङ्कर पुरुषके देखनेसे दुनियाको विषाद हुआ था, इसलिये उसका नाम “विष" हुआ । ब्रह्माजीने उस विषको अपनी स्थावर और जङ्गम-दोनों तरहकी--सृष्टिमें स्थापन कर दिया, इसलिये विष स्थावर और जङ्गम दो तरहका हो गया। चूँ कि विष समुद्र या पानीसे पैदा हुआ और आगके समान तीक्ष्ण था, इसीलिये वर्षाकालमें--पानीके समयमें For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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