SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूषक-विष चिकित्सा। २८७ कल्क सेवन कराओ। इस जुलाबसे दस्त भी होंगे और जहर भी निकल जायगा। (६) इस रोगमें भ्रम और दारुण मूर्छा भी होती है, और ये उपद्रव दिल और दिमारापर विषका विशेष प्रभाव हुए बिना हो नहीं सकते, अतः इस रोगमें नस्य और अंजन भी काममें लाने चाहियें (क ) गोबरके रसमें सोंठ, मिर्च और पीपरके चूर्णको पीसकर नेत्रोंमें आँजो। (ख ) सँभालूकी जड़, बिल्लीकी हड्डी और तगर--इनको पानीमें पीसकर नस्य दो। इससे चूहेका विष नष्ट हो जाता है । (७) केवल लगाने, सँ घाने या आँजनेकी दवाओंसे ही काम नहीं चल सकता, अतः कोई उत्तम विषनाशक अगद या और दवा भी होनी चाहिये । सभी तरहके उपाय करनेसे यह महा भयंकर और दुर्निवार विष शान्त होता है । नीचेकी दवाएँ उत्तम हैं:___ (क) सिरसके बीज लाकर आकके दूधमें भिगो दो। इसके बाद उन्हें सुखा लो । दूसरे दिन, फिर उनको ताजा आकके दूधमें भिगोकर सुखा लो। तीसरे दिन फिर, आकके ताजा. दूधमें उन्हें भिगोकर सुखा लो। ये तीन भावना हुई। इन भावना दिये बीजोंके बराबर “पीपर" लेकर पीस लो और पानीके साथ घोटकर गोलियाँ बना लो । वाग्भट्टने इन गोलियोंकी बड़ी तारीफ की है। यह अगद साँपके विष, मकड़ीके विष, चूहके विष, बिच्छूके विष और समस्त कीड़ोंके विषको नाश करनेवाली है। (ख) कैथके रस और गोबरके रसमें शहद मिलाकर चटाओ । (ग) सफेद पुनर्नवेकी जड़ और त्रिफलेको पीस-छानकर चूर्ण कर लो। इस चूर्णको शहदमें मिलाकर चटाओ। (८) दवा खिलाने, पिलाने, लगाने वगैरसे ही काम नहीं चल सकता । रोगीको अपथ्य सेवनसे भी बचाना चाहिये। इस रोगवालेको For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy