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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूषक-विष-चिकित्सा। २८३ सूजन नहीं उतरती। वह सख्त हो जाती है। इस विषमें यह विलक्षणता है, कि थोड़े दिनों तक रोगीको आराम मालूम होता है। फिर कुछ दिनोंके बाद, वही रोग पल्टा खाकर पुनः उभड़ आता है.। उस समय रोगीको ज्वर होता है । यह क्रम कई साल तक चलता है।" __ एक सजन लिखते हैं:-"चूहा काटता है, तो ज़ियादा दर्द नहीं होता । सवेरे उठनेपर काटा हुआ मालूम होता है। चूहा अगर जहरीला नहीं होता, तब तो कुछ हानि नहीं होती, परन्तु अगर जहरीला होता है, तो कुछ दिनोंमें विष रक्तमें मिलकर चेपक-सा उठाता है। अगर रोयेंवाली जगहपर काटा होता है, तो रतवा रोगकी तरह उस जगह सूजन आ जाती है । इसलिये ज्यों ही चूहा काटे, उसे जहरीला समझकर यथोचित उपाय करो । आठ दिनों तक ‘काली पाढ़'का काढ़ा पिलाओ । काली पाढ़के बदले अगर 'सोनामक्खीके पत्ते' उबालकर कुछ दिन पिलाये जायँ, तो चूहेका विष पाखानेकी राहसे निकल जाय । काटी हुई जगहपर या उसके जहरसे जो स्थान फूल उठे वहाँ दशांग लेपसे काम लो; यानी उसे शीतल पानी या गुलाबजल में घोटकर चूहेके काटे हुए स्थानपर लगाओ । यह लेप फेल नहीं होता।" चूहेके विषपर आयुर्वेदकी बातें । सुश्रुत-कल्पस्थानमें चूहे अठारह तरहके लिखे हैं । वहाँ उनके अलगअलग नाम, उनके विषके लक्षण और चिकित्सा भी अलग-अलग लिखी है । पर जिस तरह बंगसेन और भावमिश्र प्रभृति विद्वानोंने सब तरहके चूहों के विषके अलग-अलग लक्षण और चिकित्सा नहीं लिखी, उसी तरह हम भी अलग-अलग न लिखकर, उनका ही अनुकरण करते हैं, क्योंकि पाठकोंको वह सब झंझट मालूम होगा। चूहेके विषको प्रवृत्ति और लक्षण । जहाँ ज़हरीले चूहोंका शुक्र या वीर्य गिरता है अथवा उनके वीर्यसे For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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