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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिच्छू-विष-नाशक नुसख्ने । २७१ लेप करो और ऊपरसे गोबर गरम करके सुहाता-सुहाता बाँध दो। बिच्छूका विष नष्ट हो जायगा । (७१) कसौंदीके पत्ते मुँह में रखकर और चबाकर, बिच्छूके काटे हुए आदमीके कानमें फूंक मारनेसे बिच्छूका जहर उतर जाता है। वृन्दवैद्यक । (७२) नीले फूलवाले घमिराके पत्ते मसलकर सू घनेसे बिच्छूका जहर तत्काल उतर जाता है। (७३) जहरमोहरेको गुलाब-जलमें घिस-घिसकर चटाने और इसीको घिसकर डंककी जगह लगानेसे बिच्छू और साँप प्रभतिका जहर तथा स्थावर विष निश्चय ही नष्ट हो जाते हैं। - नोट-ज़हरमोहराकी पहचान हमने इसी भागकी सर्प-चिकित्सामें लिखी है। (७४) मोरके पंख, मुरौके पंख, सैंधानोन, तेल और घी-इन सबको मिलाकर, इनकी धूनी देनेसे बिच्छूका जहर उतर जाता है। (७५) सिन्दूर, मीठा तेलिया, पारा, सुहागा, चूक, निशोथ, सज्जीखार, सोंठ, मिर्च, पीपर, पाँचों नोन, हल्दी, दारुहल्दी, कमलके पत्ते, बच, फिटकरी, अरण्डीकी गिरी, कपूर, मँजीठ, चीता और नौसादर-इन सब चीजोंको बराबर-बराबर लेकर महीन पीस लो। फिर इस चूर्णको गो-मूत्र, गुड़, आकके दूध और थूहरके दूधमें मिलाकर, साँप, बिच्छू या अन्य विषैले जीवोंके काटे स्थानपर लगाओ । यह विष नाश करने में प्रधान औषधि है। हमने इसे "योगचिन्तामणि" से लिखा है । उक्त ग्रन्थके प्रायः सभी योग उत्तम होते हैं। इससे उम्मीद है, कि यह नुसखा जैसी प्रशंसा लिखी है वैसा ही होगा। इसमें सभी चीजें विष-नाशक हैं। कहते हैं, इस योगके कहनेवाले सारङ्गराज हैं। (७६) हींग, हरताल और बिजौरे नीबूका रस-इन तीनोंको खरल करके गोलियाँ बना लो । जब किसीको बिच्छू काटे, इन For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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