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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा चन्द्रोदय । .. उसका धूआँ बिच्छूके काटे स्थानपर लगने दो। इस उपायसे जहर उतर जाता है। (५०) ताड़के पत्ते, कड़वे नीमके पत्ते, पुराने बाल, सैंधानोन और घी-इन सबको मिलाकर, बिच्छूके काटे स्थानपर इनकी धूनी देनेसे जहर तत्काल उतर जाता है। __(५१) “तिब्बे अकबरी” में लिखा है, गूगल, अलसीके बीज, सैंधानोन, अलेकुमवतम और जुन्देबेदस्तर- इन सबको मिलाकर, पानीमें पीसकर, लेप करनेसे बिच्छूका जहर उतर जाता है । (५. ) पोदीना और जौका आटा- इनको तुलसीके पानी में पीसकर लगानेसे बिच्छूका ज़हर उतर जाता है। (५३) बाबूना, भूसी, खंगाली लकड़ी और तुतली - इन सबका काढ़ा बनाकर, उसीसे काटे हुए स्थानको धोने और पीछे कोई लेप लगानेसे बिच्छूका जहर उतर जाता है। - (५४) लहसनको, जैतूनके तेलमें पीसकर, काटे हुए स्थानपर लगानेसे बिच्छूका जहर नष्ट हो जाता है। (५५) परफयूनका तेल और जम्बकका तेल बिच्छूके काटे स्थानपर मलनेसे आराम होता है। (५६) बबूलके पत्तोंको चिलममें रखकर, ऊपर आग धरकर, तम्बाकूकी तरह पीनेसे बिच्छूका विष उतर जाता है । कोई लाला परमानन्दजी वैश्य इसे अपना आजमाया हुआ नुसता बताते हैं । (५७) निर्मलीके बीज, पानीके साथ पत्थरपर घिसकर, बिच्छूके. काटे स्थानपर लगानेसे बिच्छूका जहर फौरन उतर जाता है। परीक्षित है। - नोट-निर्मलीके फल गोल होते हैं। इनपर कुचले की-सी छाल होती है। विशेष करके इनकी सारी प्राकृति कुचलेसे मिलती है। निर्मलीमें विषनाशक शक्ति है । इससे पानी खूब साफ़ हो जाता है। संस्कृतमें “कतक", बँगलामें For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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