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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिच्छूकी चिकित्सामें याद रखने-योग्य बातें। २५५ साधयेत्सर्पवद्दष्टान्विषोः कीटवृश्चिकैः । । . उग्र विषवाले कीड़े और बिच्छूके डंक मारनेपर साँपकी तरह चिकित्सा करनी चाहिये। ___ बन्ध बाँधनेसे क्या लाभ ? बन्ध बाँधनेसे बिच्छू या साँपका विष खूनमें मिलकर आगे नहीं फैलता। सभी जानते हैं कि, प्राणियोंके शरीरमें खून हर समय चक्कर लगाया करता है। नीचेका खून ऊपर जाता है और ऊपरका नीचे आता है। खून में अगर विष मिल जाता है, तो वह विष उस खूनके साथ सारे शरीरमें फैल जाता है। बन्धकी वजहसे नीचेका खून नीचे ही रहा आता है; अतः खूनके साथ मिला हुआ विष भी नीचे ही रहा आता है। जब तक विष हृदय आदि ऊपरके स्थानोंमें नहीं जाता, मनुष्यकी मृत्यु हो नहीं सकती। बस, इसी गरजसे साँप-बिच्छू आदिके काटनेपर बन्ध बाँधनेकी चाल भारत और योरुप आदि सभी. देशोंमें है। पहले बन्ध ही बाँधा जाता है, उसके बाद और उपाय किये जाते हैं। अगर साँप या बिच्छू वगैरःका काटा हुआ स्थान ऐसा हो; जहाँ बन्ध न बाँधा जा सके, तो काटी हुई जगहको तत्काल चीरकर और वहाँका थोड़ा-सा मांस निकालकर, उस स्थानको तेज आगसे दाग देना चाहिये; अथवा सींगी या तूम्बी या मुंहसे वहाँका खून और जहर चूस चूसकर फेंक देना चाहिये। __ चूसना खतरेसे खाली नहीं। इसमें जरा-सी भूल होनेसे चूसनेवालेके प्राण जा सकते हैं; अतः चूसनेकी जगह तेज़ छुरी, चाकू या नश्तर वगैरःसे पहले चीरनी चाहिये । इसके बाद मैं हमें कपड़ा भरकर चूसना चाहिये । अगर सींगीसे चूसना हो, तो सींगीपर भी मकड़ीका जाला या ऐसी ही और कोई चीज़ लगाकर यानी ऐसी चीजोंसे सींगीको ढककर तब चूसना चाहिये। क्योंकि मैं हमें कपड़ा न भरने अथवा सींगीपर मकड़ीका जाला न रखनेसे ज़हर For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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