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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० चिकित्सा-चन्द्रोदय । रखकर चूसते रहने तथा इसी जड़को पीसकर साँपके काटे स्थानपर लेप करनेसे अनेक रोगी बच जाते हैं। नोट-हिन्दीमें सफ़द पुनर्नवा, विषखपरा और साँठ कहते हैं । बंगलामें श्वेतपुण्या कहते हैं । इसके सेवनसे सूजन, पाण्डु, नेत्ररोग और विष-रोग प्रभूति अनेक रोग नाश होते हैं। (६१ ) आकके फूलोंके सेवन करनेसे हल्के ज़हरवाले साँपोंका जहर नष्ट हो जाता है। (६२ ) अगर जल्दीमें कुछ भी न मिले, तो एक तोले फिटकिरी पीसकर साँपके काटेको फंकाओ और ऊपरसे दूध पिलाओ। इससे बड़ा उपकार होता है, क्योंकि खून फट जाता है और जल्दी ही सारे शरीरमें नहीं फैलता। (६३) ज़हर-मुहरेको गुलाब-जलके साथ पत्थरपर घिसो और एक दफामें कोई एक रत्ती बराबर साँपके काटे हुएको चटाओ । फिर इसीको काटे स्थानपर भी लगा दो। इसके चटानेसे तय होगी, जब कय हो जाय, फिर चटाओ । इस तरह बार-बार कय होते ही इसे चटाओ। जब इसके चटानेसे कय न हो, तब समझो कि अब जहर नहीं रहा। नोट-स्थावर और जंगम दोनों तरहके ज़हरोंके नाश करनेकी सामर्थ्य जैसी ज़हरमुहरेमें है वैसी कम चीज़ोंमें है। इसकी मात्रा २ रत्तीकी है, पर एक बारमें एक गेहूंसे ज़ियादा न चटाना चाहिये। हाँ, क्रय होनेपर, इसे बारम्बार चटाना चाहिये । ज़हर नाश करनेके लिये कय और दस्तोंका होना परमावश्यक है। इसके चाटनेसे खूब कय होती हैं और पेटका सारा विष निकल जाता है। जब पेटमें ज़हर नहीं रहता, तब इसके चाटनेसे क्रय नहीं होती। ज़हरमुहरा दो तरहके होते हैं-(१) हैवानी, और (२)मादनी । हैवानी ज़हरमुहरा मैंडक वग़रःसे निकाला जाता है और मादनी ज़हरमुहरा खानोंमें पाया जाता है । यह एक तरहका पत्थर है। इसका रंग ज़र्दी माइल सफेद होता है। नीमकी पत्तियों और ज़हरमुहरेको एक साथ मिलाकर पीसो और फिर चक्खो । अगर नीमका कड़वापन जाता रहे, तो समझो कि ज़हरमुहरा असली है। यह पसारियों और अत्तारोंके यहाँ मिलता है । ख़रीद कर परीक्षा अवश्य कर लो, जिससे समयपर धोखा न हो। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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