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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * सर्प-विषको र सामान्य चिकित्सा। उधर हमने तीनों किस्मके साँपोंकी वेगानुरूप, दोषानुरूप और उपद्रवानुसार अलग-अलग चिकित्साएँ लिखी हैं । उन चिकित्साओंके लिये सोकी किस्म जानने, उनके वेग पहचानने और दोषोंके विकार समझ की जरूरत होती है। ऐसी चिकित्सा वे ही कर सकते हैं, जिन्हें इन सब बातोंका पूरा ज्ञान हो; अतः नीचे हम ऐसे नुसने लिखते हैं, जिनसे गँवार आदमी भी सब तरहके साँपोंके काटे आदमियोंकी जान बचा सकता है । जिनसे उतना परिश्रम न हो, जो उतना ज्ञान सम्पादन न कर सकें, वे कमसे-कम नीचे लिखे नुसखोंसे काम लें । जगदीश अवश्य प्राणस्ता करेंगे। XDED सर्प-विष नाशक नुसखे । .... ...... .......... * __(१) घी, शहद, मक्खन, पीपर, अदरख, कालीमिर्च और सैंधानोन-इन सातों चीजोंमें जो पीसने लायक हों, उन्हें पीस-छान लो । फिर सबको मिलाकर, साँपके काटे हुएको पिलाओ। इस नुसनेके सेवन करनेसे क्रोधमें भरे तक्षक-साँपका काटा हुआ भी आराम हो जाता है । परीक्षित है। ००० For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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