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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www सर्प-विष-चिकित्सा--विष-नाशक अगद। २२५ मालिश करनेसे अत्यन्त तेज़ विष और गर विष नष्ट हो जाता है। इस धूपको शरीरमें लगाकर कन्याके स्वयम्बर, देवासुर-युद्ध-समानयुद्ध और राजदरबारमें जानेसे विजय-लक्ष्मी प्राप्त होती है; अर्थात् फतह होती है। जिस घरमें यह धूप रहती है, उस घरमें न कभी आग लगती है, न राक्षस-बाधा होती है और न उस घरके बच्चे ही मरते हैं। अजित अगद । बायबिडंग, पाठा, अजमोद, हींग, तगर, सोंठ, मिर्च, पीपर, हरड़, बहेड़ा, आमला, सेंधानोन, विरिया नोन, बिड़नोन, समन्दर नोन, कालानोन और चीतेकी जड़की छाल--इन सबको महीन पीस-छानकर, “शहद" में मिलाकर, गायके सींगमें भरकर, ऊपरसे सींगका ही ढकना लगा दो और १५ दिन तक रक्खी रहने दो। जब काम पड़े, इसे काममें लाओ। इसके सेवन करनेसे स्थावर और जङ्गम सब तरहके विष नष्ट होते हैं। ..... नोट--जब इसे पिलाना, लगाना या श्राँजना हो, तब इसे घी, दूध या शहदमें मिला लो। । चन्द्रोदय अगद। चन्दन, मैनशिल, कूट, दालचीनी, तेजपात, इलायची, नागरमोथा, सरसों, बालछड़, इन्द्रजौ, केशर, गोरोचन, असवण, हींग, सुगन्धवाला, लामज्जकतृण, सोया और फूलप्रियंगू-इन सबको एकत्र पीसकर रख दो । इस दवासे सब तरहके विष नाश हो जाते हैं। ऋषभागद । जटामासी, हरेणु, त्रिफला, सहजना, मजीठ, मुलेठी, पद्माख, बायबिडंग, तालीसके पत्ते, नाकुली, इलायची, तज, तेजपात, चन्दन, For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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