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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्प-विष-चिकित्सा । २१६ मण्डली सोकी वेगानुरूप चिकित्सा । (१) पहले वेगमें- खून निकालो। (२) दूसरे वेगमें-शहद और घीके साथ अगद पिलाओ और वमन कराकर विषनाशक यवागू दो। (३) तीसरे वेगमें तेज़ जुलाब देकर, यवागू दो। (४-५) चौथे और पाँचवें वेगमें-द/करके समान काम करो। (६) छठे वेगमें - काकोल्यादिके साथ पकाया हुआ दूध पिलाओ . या महाऽगद आदि तेज़ अगद पिलाओ। (७) सातवें वेगमें--असाध्य समझकर अवपीड़ नस्य नाकमें चढ़ाओ, विषनाशक दवा खिलाओ और सिरपर, काकपद करके, ताजा मांस या खून-मिला चमड़ा रखो। ___ नोट-गर्भवती, बालक और बूढ़ेकी फ़स्द खोलकर खून मत निकालो। अगर निकालो ही तो कम निकालो। मण्डलीके ज़हरमें पित्त प्रधान होता है। अगर ऐसा साँप पित्त प्रकृतिवाले-गरम मिज़ाजवालेको काटता है, तो ज़हर डबल ज़ोर करता है, अतः खून न निकालकर खूब शीतल उपचार करो। राजिल सौकी वेगानुरूप चिकित्सा । (१) पहले वेगमें- खून निकालो और शहद-घीके साथ अगद या विषनाशक दवा पिलाओ । (२) दूसरे वेगमें-वमन कराकर, विष-नाशक अगद--शहद और घीके साथ पिलाओ। (३-४-५) तीसरे, चौथे और पाँचवें वेगमें--सब काम दीकरोंके समान करो। (६) छठे वेगमें-तेज़ अंजन आँखों में आँजो । (७) सातवें वेगमें--तेज़ अवपीड़ नस्य नाकमें चढ़ाओ। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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