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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्प-विष-चिकित्सामें याद रखने योग्य बातें। २११ .. (४) गरमीके मौसममें, गरम मिजाजवालेको साँप काटे, तो आप असाध्य समझो। अगर मण्डली सर्प काटे, तो और भी अस ध्य समझो। (५) साँपके काटे आदमीको घी, घी और शहद अथवा घी मिली दवा दो; क्योंकि विषमें “घी पिलाना" रोगीको जिलाना है। (६) तेल, कुल्थी, शराब, काँजी आदि खट्टे पदार्थ साँपके काटेको मत दो। हाँ, कचनार, सिरस, आक और कटभी प्रभृति देना अच्छा है। (७) अगर आपको साँपकी क़िस्मका पता न लगे, तो दंश-स्थानकी रङ्गत, सूजन और वातादि दोषोंके लक्षणोंसे पता लगा लो। ___(८) इलाज करनेसे पहले पता लगाओ, कि साँपके काटे हुएको प्रमेह, रूखापन, कमजोरी आदि रोग तो नहीं हैं, क्योंकि ऐसे लोग असाध्य माने गये हैं। () किस तिथि और किस नक्षत्रमें काटा है, यह जानकर साध्यासाध्यका निर्णय कर लो। (१०) इलाज करनेसे पहले इस बातको अवश्य मालूम कर लो कि, सर्पने क्यों काटा ? इससे भी आपको साध्यासाध्यका ज्ञान होगा। (११) सर्प-दंशकी जाँच करके देखो, वह सर्पित है या रदित वगैरः । इससे आपको साध्यासाध्यका ज्ञान होगा। (१२) दिन-रातमें किस समय काटा, इसका भी पता लगा लो । इससे आपको साँपकी किस्मका अन्दाजा मालूम हो जायगा। (१३) पता लगाओ, साँपने किस हालतमें काटा। जैसे-घबराहटमें, दूसरेको तत्काल काटकर अथवा कमजोरीमें। इससे आपको विषकी तेजी-मन्दीका ज्ञान होगा। (१४) रोगीको देखकर पता लगाओ कि, किस दोषके विकार हो रहे हैं । इस उपायसे भी आप सर्पकी किस्म जान सकेंगे। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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