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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ चिकित्सा-चन्द्रोदय । बहुधा सफलता होती रहती है-बिरले ही केसोंमें असफलता होती है । वाग्भट्टमें लिखा है:-- भुजंग दोष प्रकृति स्थान वेग विशेषतः । सुसूक्ष्मं सम्यगालोच्य विशिष्टां माचरेत् क्रियाम् ।। साँप, दोष, प्रकृति, स्थान और विशेषकर वेगको सूक्ष्म बुद्धि या बारीकीसे समझ और विचारकर, “विशेष चिकित्सा" करनी चाहिये । इन पाँचों बातोंका विचार कर लेनेसे ही काम नहीं चल सकता। इनके अलावा, नीचे लिखी चार बातोंका भी विचार करना जरूरी है:--- (१) देश। (२) सात्म्य । (३) ऋतु। (४) रोगीका बलाबल । और भी विचारने योग्य बातें । काटनेवाले सर्पोके सम्बन्धमें भी वैद्यको नीचे लिखी बातें मालूम करनी चाहिये:-- (क) किस जातिके सर्पने काटा है ? जैसे,--दीकर और मण्डली इत्यादि । . (ख) किस अवस्थामें काटा है ? जैसे, घबराहट में या काँचली छोड़ते हुए इत्यादि। (ग) किस अवस्थाके सर्पने काटा है ? जैसे,--बालक या बूढेने । (घ) साँप नर था या मादीन अथवा नपुंसक इत्यादि ? (ङ) सपने क्यों काटा ? दबकर, क्रोधसे, पूर्वजन्मके वैरसे अथवा ईश्वरके हुक्मसे इत्यादि । वाग्भट्टने कहा है:-- आदिष्टात् कारणं ज्ञात्वा प्रतिकुर्याद्यथायथम् । किस कारणसे काटा है, यह जानकर यथोचित चिकित्सा करनी चाहिये। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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