SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ चिकित्सा-चन्द्रोदय । — बन्द बाँधनेसे विष इस तरह ठहर जाता है जिस तरह पुल बाँधनेसे पानी । बन्ध से बंधी हुई नसोंमें विष नहीं जाता। ___ बहुधा साँप हाथ-पैरकी अँगुलियों में ही काटता है। अगर ऐसा हो, तब तो आपका काम बन्ध बाँधनेसे चल जायगा। हाथ-पैरों में भी आप बन्ध बाँध सकते हैं, पर अगर साँप पेट या पीठ आदि ऐसे स्थानोंमें काटे जहाँ बन्ध न बँध सके, तब आप क्या करेंगे ? इसका जवाब हम आगे नं० २ में लिखेंगे। हाँ, बन्ध ऐसा ढीला मत बाँधना कि, उससे खूनकी चाल न रुके । अगर आपका बन्ध अच्छा होगा, तो बन्धके ऊपरका खून, काटकर देखने से, लाल और बन्धके नीचेका काला होगा । यही अच्छे बन्धकी पहचान है। ___ बन्धके सम्बन्धमें दो-चार बातें और भी समझ लो । बन्ध बाँधनेसे पहले यह भी देख लो, कि खूनमें मिलकर विष कहाँ तक पहुँचा है । ऐसा न हो कि, ज़हर ऊपर चढ़ गया हो और आप बन्ध नीचे बाँधे । इस भूलसे रोगीके प्राण जा सकते हैं। अतः हम 'जहर कहाँ तक पहुँचा है' इस बातके जाननेकी चन्द तरकीबें बतलाये देते हैं पहले, काटे हुए स्थानसे चार अंगुल या ६७ अंगुल ऊपर आप सूत, रेशम, सन, चमड़ा या डोरीसे बन्ध बाँध दो। फिर देखो, बन्धके आस-पास कहींके बाल सो तो नहीं गये हैं। जहाँके बाल आपको सोते दीखें, वहीं आप ज़हर समझे। क्योंकि जहर जब बालोंकी जड़ोंमें पहुँचता है, तब वे सो जाते हैं और विषके आगे बढ़ते ही पीछेके बाल, जो पहले सो गये थे, खड़े हो जाते हैं और आगेके बाल, जहाँ विष होता है, सो जाते हैं। दूसरी पहचान यह है कि, जहाँ विष नहीं होता, वहाँ चीरनेसे लाल खून निकलता है; पर जहाँ जहर होता है, काला खून निकलता है। ज्यों-ज्यों ज़हर चढ़ता है, नसोंका रंग नीला होता जाता है। नसोंका रंग For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy