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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जंगम-विष-चिकित्सा-सोका वर्णन। १८३ हैं। शरीरमें दाह-जलन और प्यासका जोर रहता है, शीतल पदार्थ खाने-पीने और लगानेकी इच्छा होती है। मद, मूर्छा-बेहोशी और बुखार भी होते हैं। मुंह, नाक, कान, आँख, गुदा, लिंग और योनि द्वारा खून भी आने लगता है। मांस ढीला होकर लटकने लगता है। सूजन आ जाती है । डसी हुई या साँपकी काटी हुई जगह गलने और सड़ने लगती है । उसे सर्वत्र सभी चीजें पीली-ही-पीली दीखने लगती हैं.। विष जल्दी-जल्दी चढ़ता है । इनके सिवा और भी पित्त-विकार होते हैं। राजिल । खाजिल या राजिमन्त साँकी प्रकृति कफ-प्रधान होती है । इसलिये ये जिसे काटते हैं उसका चमड़ा, नेत्र, नख, मल और मूत्र--ये सब सफ़ेदसे हो जाते हैं । जाड़ा देकर बुखार चढ़ता है,रोएँ खड़े हो जाते हैं, शरीर अकड़ने लगता है, काटी हुई जगहके आस-पास एवंशरीरके औरभागोंमें सूजन आ जाती है, मैं हसे गाढ़ा-गाढ़ा कफ गिरता है, कय होती हैं, आँखोंमें बारम्बार खुजली चलती है; कण्ठ सूख जाता है और गलेमें घर-घर घर-घर आवाज़ होती है तथा साँस रुकता और नेत्रोंके सामने अँधेरा-सा आता है। इनके सिवा, ककके और विकार भी होते हैं। नोट-८० तरहके साँके काटे हुएके लक्षण इन्हीं तीन तरहके साँपोंके लक्षणों के अन्दर आ जाते हैं; अतः अलग-अलग लिखनेकी ज़रूरत नहीं। विषके लक्षण जाननेसे लाभ। ऊपर सर्पो के डसने या विषके लक्षण दंशकी शीघ्र मारकता जाननेके लिये बताये हैं, क्योंकि विष तीक्ष्ण तलवारकी चोट, वजू और अग्निके समान शीघ्र ही प्राणीका नाश कर देता है। अगर दो घड़ी भी ग़फ़लस की जाती है, तत्काल इलाज नहीं किया जाता, तो विष मनुष्यको मार डालता है और उसे बातें करनेका भी समय नहीं देता। .. ... साँप-साँपिन प्रभृति साँपोंके डसनेके लक्षण । (१) नर-सर्पका काटा हुआ आदमी ऊपरकी ओर देखता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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