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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जंगम-विष-चिकित्सा-सों का वर्णन | १८१ . (४) सर्पाङ्गाभिहत । जब डरपोक आदमीके शरीरसे सर्प या सर्पका मुँह खाली लग जाता है-सर्प काटता नहीं-खरौंच भी नहीं आती, तो भी मनुष्य भ्रमसे अपने-तई सर्प द्वारा डसा हुआ या काटा हुआ समझ लेता है । ऐसा समझनेसे वह भयभीत होता है। भय के कारण, वायु कुपित होकर कदाचित् सूजन-सी उत्पन्न कर देता है। इस दशामें भयसे मनुष्य बेहोश हो जाता है और प्रकृति भी बिगड़ जाती है । वास्तवमें काटा नहीं होता, केवल भयसे मूर्छा आदि लक्षण नजर आते हैं, इससे परिणाममें कोई हानि नहीं होती । इसीको "सर्पाङ्गाभिहित" कहते हैं । इस दशामें रोगीको तसल्ली देना, उसको न काटे जानेका विश्वास दिलाकर भय-रहित करनाऔर मन समझानेको यथोचित चिकित्सा करना आवश्यक है। विचरनेके समयसे साँपोंकी पहचान । रातके पिछले पहरमें प्रायः राजिल, रातके पहले तीन पहरोंमें मण्डली और दिनके समय प्रायः दर्बीकर घूमा करते हैं । खुलासा यों समझिये, कि दिनके समय दर्बीकर, सन्ध्या-कालसे रातके तीन बजे तक मण्डली और रातके तीन बजेसे सवेरे तक राजिल सर्प प्रायः फिरा करते हैं। . _ नोट--काटे जानेका समय मालूम होनेसे भी, वैद्य काटनेवाले सर्पकी जातिका क़यास कर सकता है । ये सर्प सदा इन्हीं समयों में घूमने नहीं निकलते, पर बहुधा इन्हीं समयोंमें निकलते हैं। अवस्था-भेदसे साँपोंके जहरको तेजी और मन्दी। नौलेसे डरे हुए, दबे हुए या घबराये हुए, बालक, बूढ़े, बहुत समय तक जलमें रहनेवाले, कमजोर, काँचली छोड़ते हुए, पीले यानी पुरानी काँचली ओढ़े हुए, काटनेसे एकाध क्षण पहले दूसरे प्राणीको काटकर अपनी थैलीका विष कम कर देनेवाले साँप अगर काटते हैं, तो उनके विषमें अत्यल्प प्रभाव रहता है, यानी इन हालतोंमें काटनेसें For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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