SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुओं द्वारा दिये हुए विषकी चिकित्सा । १४७ कन्यायें लाजवाब सुन्दरी होती थीं; पर उनके साथ मैथुन करनेसे अमीरोंका खातमा हो जाता था। आजकल यह चाल है कि नहीं, इसका पता नहीं । अब आगे हम हर तरहके पदार्थो की विष-परीक्षा और साथ ही उनके विषनाशक उपाय लिखते हैं। PREPPEECRETOURCENSETTE. Cave विष-मिले भोजनकी परीक्षा। HOSPORNCERIEDEREDEO (१) खानेके पदार्थोंसे थोड़े-थोड़े पदार्थ कव्वे, बिल्ली और कुत्ते प्रभृतिके सामने डालो। अगर उनमें विष होगा, तो वे खाते ही मर जायँगे। (२) विष-मिले पदार्थों की परीक्षा चकोर, जीवजीवक, कोकिला, क्रौंच, मोर, तोता, मैना, हंस और बन्दर प्रभृति पशु-पक्षियों द्वारा, बड़ी आसानीसे होती है; इसीलिये बड़े-बड़े अमीरों और राजा-महाराजाओंके यहाँ उपरोक्त पक्षी पाले जाते हैं । इनका पालना या रखना फ़िजूल नहीं है । अमीरोंको चाहिये, अपने खानेकी चीजोंमेंसे नित्य थोड़ी-थोड़ी इन्हें खिलाकर, तब खाना खावें। विष-मिले पदार्थ खाने या देख लेने ही से चकोरकी आँखें बदल जाती हैं । जीवजीवक पक्षी विष खाते ही मर जाते हैं। कोकिलाकी कण्ठध्वनि या गलेकी सुरीली आवाज़ बिगड़ जाती है । क्रौंच पक्षी मदोन्मत्त हो जाता है । मोर उदास-सा होकर नाचने लगता है । तोतामैना पुकारने लगते हैं। हंस बड़े जोरसे बोलने लगता है । भौंरे गूंजने लगते हैं । साम्हर आँसू डालने लगता है और बन्दर बारम्बार पाखाना फिरने लगता है। (३) परोसे हुए भोजनमेंसे पहले थोड़ा-सा आगपर डालना चाहिये । अगर भोजनके पदार्थों में विष होगा, तो अग्नि चटचट करने लगेगी अथवा उसमेंसे मोरकी गर्दन-जैसी नीली और कठिनसे सहने योग्य ज्योति निकलेगी, धूआँ बड़ा तेज़ होगा और जल्दी शान्त न होगा तथा आगकी ज्योति छिन्न-भिन्न होगी। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy