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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा - चन्द्रोदय | (२५) कुचला २ तोले, अफीम ६ माशे, धतूरेका रस ४ तोले, लहसनका रस ४ तोले, चिरायतेका रस ४ तोले, नीबूका रस ४ तोले, टेकारीका रस ४ तोले, तमाखूके पत्तोंका रस ४ तोले, दालचीनी ४ तोले, अजवायन ४ तोले, मेथी ४ तोले, कड़वा तेल १ सेर, मीठा तेल १ सेर और रेंडीका तेल आध सेर-- इन सबको मिलाकर, आगपर रखो और मन्दी मन्दी आग से पका । जब सब दवाएँ जलकर तेलमात्र रह जाय, उतार लो और छानकर बोतल में भर लो। इस तेल की मालिशसे सब तरहकी वातव्याधि और दर्द आराम होता है । यह तेल कभी फेल नहीं होता । परीक्षित है । (२६) कुचला ३ तोले, दालचीनी ३ तोले, खानेकी सुरती ३ तोले, लहसन ४ तोले, भिलावा ( तोले और मीठा तेल २० तोले -- सबको मिलाकर पकाओ; जब दवाएँ जल जायँ, तेलको उतारकर छान लो । इस तेलके लगानेसे गठिया और सब तरहका दर्द आराम होता है । (२७) शुद्ध कुचला, शुद्ध तेलिया विष और शुद्ध चौकिया सुहागा -- इन तीनोंको समान समान लेकर खरल करके रख लो । इसमेंसे रत्ती - रत्ती भर दवा रोज़ सवेरे शाम खिलाने से २१ दिनमें बावले कुत्तेका विष निश्चय ही नाश हो जाता है । नोट - कुत्ते के काटते ही घावका खून निकाल डालो और लहसन सिरके में पीसकर घावपर लगाम्रो अथवा कुचलेको ही आदमीके मूत्रमें पीसकर लगा दो । (२८) कुचलेका तेल लगानेसे नासूर सिरकी गंज और उकवत रोग आराम हो जाते हैं । For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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